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Sunday, May 29, 2011

(44) वह मेरी ज़िन्दगानी है

न वह हूरों की शहजादी, न वह परियों की रानी है
मैं उससे प्यार करता हूँ, वह मेरी ज़िन्दगानी है.

वह एक भोली सी लड़की है कि जैसी आम होती है
उसी के नाम से मेरी सुबह और शाम होती है
मैं उस चेहरे पर मायूसी कभी भी सह नहीं पाता
हमारे प्यार की यह एक छोटी सी कहानी है
मैं उससे प्यार करता हूँ वह मेरी ज़िन्दगानी है.

मेरे घर जब से आई है बहारों में बहारें है
महकता सा लगे आँगन, चहकती सी दीवारें हैं
मैं सारी देवियों के रूप उसमें साथ पाता हूँ
वह लक्ष्मी, शारदा, सीता है, कल्याणी, भवानी है
मैं उससे प्यार करता हूँ वह मेरी ज़िन्दगानी है.

वह अक्सर रूठ जाती है तो सारा घर मनाता है
उसी की मुस्कुराहट से मेरा घर मुस्कुराता है
वह जो चाहे वही होता कोई इफ-बट नहीं होता
हमारे घर में उसकी ही, फकत शाह-ए-जहानी  है 
मैं उससे प्यार करता हूँ वह मेरी ज़िन्दगानी है .

वह दद्दा की चहेती है, वह दादी शा की प्यारी है
वह माँ की मानिनी बेटी, वह बापू की दुलारी है
मैं उसको देख सारे गम ज़माने के भुला देता
वह सबका ख्याल रखती है, मगर थोड़ा गुमानी है
मैं उससे प्यार करता हूँ वह मेरी ज़िन्दगानी है.

वह मेरा मान है, सम्मान है, इज्जत है, नेमत है
हमारे वास्ते अहले खुदाई की वह रहमत है
मैं उसका बाप हूँ, उसको बड़े नाजों से पाला है 
वह मेरी प्यारी बेटी है, सलोनी है सयानी है 
मैं उससे प्यार करता हूँ वह मेरी ज़िन्दगानी है . 

2 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी कविता।
विचार

S.N SHUKLA said...

Manoj ji,
Rachna aapko achhi lagi.Aapki prashansa ke liye bahut-bahut dhanyvad.