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Saturday, May 28, 2011

(34) कुँए का मेढक

वृष्टि अनवरत थी जारी, भीषण वर्षा के मारे
नदी, ताल, वन और खेत जलमग्न हो गए सारे.

उसी बाढ़ में सागर का मेढक भी बाहर आया
दैव योग ने उसे ठेलकर कुँए तलक पहुँचाया.

लेकिन उसे देखते ही कूपे का मेढक बिदका
कुँए मध्य हो अब तक का जीवन बीता था जिसका.

कौन, कहाँ के हो तुम और यहाँ तक कैसे आये
मार्ग भ्रमित हो गए, याकि पानी में बहकर आये?

भीषण वर्षा से सम्पूर्ण धरा जल प्लावित भाई
यही बाढ़ मुझको सागर से यहाँ तलक ले आई.

वह बोला सागर क्या है? क्या वह दूसरा कुआँ है
तुम्हें देखकर मेरे मन में संशय तनिक हुआ है .

सागर तो असीम है भाई, उसकी तुलना भ्रम है
लाखों कुँए मिलें तब भी सागर के सम्मुख कम हैं.

कुँए का मेढक बोला- है भाग्य तुम्हारा फूटा
सागर और कुँए से बढ़कर निकल यहाँ से झूठा.

मैं जीवन भर निकल न पाया इस कुँए के बाहर
तू बहकर आ गया यहाँ, कहता विशाल है सागर.

याद रखो जिसने जीवन में जितना कुछ देखा है
उसके ज्ञान क्षेत्र की बस वह ही अंतिम रेखा है.

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