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Editor "LAUHSTAMBH" Published form NCR.

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Monday, April 25, 2011

(11) निष्काम कर्म

था कहा  कृष्ण ने कर्म वश्य प्राणी नर जीवन पाता है
निष्काम कर्म का वाक्य स्वंय फिर प्रश्न मात्र रह जाता है
निष्काम भाव से करे कर्म तो लक्ष्य कहाँ रह जायेगा
क्या लक्ष्यहीन मानव जीवन में कभी सफल हो पायेगा?

कामना जब तलक  है मन में जीवन गतिमान तभी तक है
जब तक उद्देश्यपूर्ण गति है, जीवन वरदान तभी तक है
उद्देश्यहीन नर इस जग में, पग-पग ठुकराया जायेगा
फिर निरुद्देश्य, निस्पृह, निरीह कैसे कोई  रह पायेगा?

गुरु, पिता, सखा, जननी, भगिनी, पत्नी, सुत हो या प्राणी मात्र
किसके प्रति  कैसे रखें  भाव, कर्तव्य  सिखाते हमें शास्त्र  
हो धर्म, अर्थ  या काम, मोक्ष  प्राणी जब उस  पथ  जायेगा
कामनाहीन  रहकर  कैसे फिर लक्ष्य वेध  कर  पायेगा?

उस कंस नाश में जननि, जनक मुक्ति का ध्येय ही छाया था
फिर सगी  बुआ के  पुत्रों  हित  कृष्ण  ने युद्ध  रचवाया  था
पूतना, बकासुर वध, कालीदह  में भी  थे कुछ निहित स्वार्थ  
निष्काम  कर्मयोगी  कैसे फिर कहा कृष्ण को  जायेगा?  

(10) हथियार गहेंगे

मौन रहे अब भी यदि तो फिर बढ़ते अत्याचार रहेंगे.
सहनशीलता  की सीमा है आखिर कब तक भार सहेंगे .

कहीं हवाला, कहीं घोटाला, कहीं तहलका डाट काम है
किसको कौन किस तरह पकडे चोरों में तीसरा नाम है
दफ्तर, अफसर, मंत्री सब का पैसा ही बस लक्ष्य रह गया
विभ्रम, विवश, विवेकशून्य हम कब तक इनका साथ गहेंगे .

सैन्यायुध खरीद में भी अब शासन करता गोलमाल है
देश लुटेरों के हाथों में चोरों का बिछ रहा जाल है
कौन करे  प्रतिवाद किसी का, चोर-चोर मौसेरे  भाई
यही लुटेरे कल चोरी, रिश्वत अपना अधिकार कहेंगे

हर चुनाव में गलती अपनी दोष दूसरों को देते हैं
स्वार्थ विवश या फिर दबाववश बाहुबली को चुन लेते हैं
छूट  लूट की जब दी हमने तो फिर जग से रोना कैसा
आखिर कब तक शोषित पीड़ित बेबश और लाचार रहेंगे .

जाति, धर्म की सीमाओं से देश न बाटें नेक राय है
दल की निष्ठा छोड़ चुने हम व्यक्ति यही अंतिम उपाय है
आज न चेते तो निश्चित  है भावी  पीढ़ी की बरबादी
युवा रक्त लेगा उबाल तो कलम  छोड़ हथियार गहेंगे .

Sunday, April 24, 2011

(9) कैसे मान लें हम

इस अमा की रात को वरदान कैसे मान लें हम.
है प्रगति पथ राष्ट्र का अभियान कैसे मान लें हम .

स्वार्थ, लिप्सा, कुटिलता, कुविचार हर मन में भरा है
अराजकता, अनृत, छल, अन्याय से पूरित धरा है
स्वहित पोषण ही जहाँ पर नीति शासक वर्ग की  हो
उस स्वशासन  को भला वरदान कैसे मान लें हम .

हम प्रगति पथ अग्रसर हैं देश में नित घोषणायें
किन्तु अब तक बेअसर है नीतियाँ सब योजनायें
योजना या घोषणा का  षष्ठमांश कृतित्व दुष्कर
चढ़ सकेंगे प्रगति के सोपान कैसे मान ले हम .

वेश, भूषा, तत्त्व, दर्शन, धर्म आयातित  जहाँ पर
और अपना धर्म, भाषा, वेश ही शापित जहाँ पर
अनुकरण  होता जहाँ पर दूसरों की सभ्यता का
राष्ट्र का होगा वहां  पर उत्थान कैसे मान लें हम .

नीति सिखलाते हमें अब हैं उजालों के लुटेरे
बस इसी से नीति पथ , सनमार्ग पर बादल घनेरे
दम्भ, हिंसा, द्वेष, ईष्र्या से प्रदूषित  आज जन मन
इस निशा में उदय होगा  भानु कैसे मान लें हम .

(8) नेकी का फल

ठसाठस भरी हुई नगर बस-
गोद में दुधमुहा शिशु दबाए खड़ी नवयौवना  को देखा-
त्यों ही -
मेरे मन में सहानुभूति  की चिंगारी फूटी
मैंने अपनी सीट से उठते हुए कहा-
बहन जी बैठ जाइये .
बच्चा भीड़ में परेशान हो जायेगा-
खड़े होने का कष्ट मत उठाइए.
उसने मुझे भस्म कर देने वाली नजरों से-
घूरते हुए कहा -
बदतमीज़ी करते हो शर्म नहीं आती ?
क्या तुम्हारी माँ बहने बस में नहीं जातीं ?
हम इस अप्रत्याशित स्तिथि पर परेशान थे .
तब तक देखा -
हमारे सीट पर एक और भद्र पुरुष विराजमान थे .
पड़ोस की सीटों पर बैठे लोग -
मेरी दयनीय स्तिथि पर मुस्कुरा  रहे थे .
और हम-
अपनी सीट खुद छोड़ कर पछता रहे थे.


नेकी का फल

(7) कुएं में ही भाँग है

अपने विवाहित मित्रों की दृष्टि में-
मैं आवारा हूँ.
क्योंकि तीस वसंत देखने के बाद भी
अभी  तक क्वांरा  हूँ .
अब तुम्हें क्या बताऊँ
अजब सूरते हाल है
इस महंगाई में एक पेट लेकर तो जीना  मुहाल है .
खैर मैंने अपना साहस बटोर
और मित्रों की हिकारत का जवाब देने के लिए
वैवाहिक विज्ञापन का मसौदा कुछ इस तरह जोड़ा .
तीस वर्षीय लम्बे, छरहरे, गौरवर्ण, स्नातकोत्तर  युवक को -
एक अदद पत्नी की तलाश है .
प्रतिउत्तर के ढेरों खतों को पढ़-
अब मेरा मन बिलकुल  निराश है.
लगभग हर उम्मीदवार  की -
दहेज में  कार और रंगीन टीवी की मांग है.
अब आप ही सुझाएँ - मैं क्या करूँ
यहाँ तो कुएं में ही भाँग है.