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Monday, May 30, 2011

(45) इसको सुबुद्धि देना महेश

कोई फल खाता है कोई चारा भूसा ही खाता है
कोई पत्ते खाकर जीता, पर मांस किसी को भाता है

मुहँ से तो कोई नाक लगा पानी पीने की अलग विधा
कोई चाट-चाट कोई सुड़क-सुड़क देखी जाती इनमें विविधा

कोई एक सींग, कोई दो सिंगा, कोई बारह सींगों वाला है
है बिना सींग के भी अनेक कोई लिए नाक पर भाला है

कुछ पूछ युक्त, कुछ पूछ हीन, पूछें भी हैं कैसी-कैसी
छोटी, मोटी,पतली, झबरी, रस्सी जैसी, झाड़ू जैसी 

पत्ती जैसे, पत्तों जैसे तो सूप सरीखे कोई कान
मोटे, पतले, कुछ गिरे- खड़े, है कड़े मुलायम कोई कान

लम्बी गरदन, ऊँची गरदन, छोटी गरदन, मोटी गरदन
है कोई ग्रीवा नाम मात्र, तो को आठ फुटी गरदन

पंजोंवाला, कोई फीलपांव, कोई पैर और कोई खुरवाला 
कोई नाल जडाता टापों में, फिर चलता होकर मतवाला.

कोई लम्बोदर, कोई उच्च पृष्ठ, कोई विविध रंगों की लिए शान 
आकार किसी का अति लघुतम, कोई विशाल पर्वत समान

कोई फुदक-फुदक, कोई मस्त चाल, कोई सरपट दौड़ लगाता है 
कोई उछल कूद में दक्ष  और डाली-डाली मंडराता है 

रेंकता, रंभाता, मिमियाता, कोई चिंघाड़ लगाता है 
गर्जत, भौकता है कोई, लेकिन कोई गुर्राता है .

पशु अपनी इन्हीं भिन्नताओं से जाति-वर्ग में हैं विभक्त 
लेकिन मानव में क्या अंतर, क्यों मनुज , मनुज के लिए त्यक्त 

आकार बनावट एक सदृश फिर भी फैला ईर्ष्या द्वेष
नर ज्ञानवान होकर अजान, इसको सुबुद्धि देना महेश


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