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Monday, May 23, 2011

(13) दो ख़त

उसने मुझको इस जीवन में
कितनी ही बार लिखे ख़त हैं
पर मैं जो अब तक समझ सका
तो दो ही मुझे दिखे ख़त हैं.

पहले कुछ ख़त जिनमें केवल
था प्यार- प्यार कुछ और नहीं
पर उसके बाद लिखे जितने
शिकवे इतने कुछ ठौर नहीं.

तीतर के आगे था तीतर
तीतर के पीछे था तीतर
आगे तीतर, पीछे तीतर
तो आगे-पीछे था तीतर.

जैसे इस सहज पहेली में
वे सारे ही तीतर दो थे
बस उसी तरह उसके सारे
वे ख़त मिलकर के भी दो थे.

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