पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और हवा
और पाँचों दैनंदिन जीवन में गतिमान .
युद्ध का प्रतीक पृथ्वी, वीर भोग्या वसुंधरा .
संघर्ष का प्रतिमान अग्नि,ताप भी- तेज भी .
प्रवाह का द्योतक जल, जुएँ जैसा अनियंत्रित .
शून्य का बिम्ब आकाश, अनंत आशाओं सा .
और जीवनदायिनी वायु, जो अदृश्य है - पहेली है .
(१ )
जीवन युद्ध है .
यहाँ विजय भी संभव है तो पराजय भी ,
जैसा कि हर युद्ध में होता है .
किन्तु फिर भी आदमी जीतना चाहता है, केवल जीतना .
जो जीत नहीं पाते ,
साहस खो देते हैं,
वे ही वरण करते हैं आत्म- वध का मार्ग .
दूसरी सेनाओं से लड़ते हुए -
सैनिक भी तो पराजित होते हैं ,
तो क्या वे आत्महत्या कर लेते हैं ?
(२ )
जीवन संघर्ष है .
अर्थात जीवन जीना है तो,
लड़ना होगा, सिर्फ लड़ना .
और कोई मार्ग भी तो नहीं है .
जो संघर्ष से घबराते हैं ,
वे बिना लड़े ही हार जाते हैं .
फिर वे दायित्वों से विमुख-
पलायनवाद का मार्ग अपनाते हैं .
और सारा जीवन -
दूसरों की कृपा पर आश्रित ,
दूसरों की झिड़कियाँ सहकर बिताते हैं .
(३ )
जीवन जुआं है .
जहां आवश्यक नहीं-
कि हर पाशा सीधा ही पड़े .
किन्तु यह प्रकृति प्रदत्त मजबूरी है.
न चाहते हुए भी -
इस जुएँ में पाशा फेकना जरूरी है .
हर पाशा उलटा भी नहीं पड़ता ,
जब भी पाशा तुम्हारे पक्ष में आयेगा .
अनायाश ! सब कुछ ठीक हो जाएगा .
(४ )
जीवन आशा है .
अर्थात आशा ही जीवन है .
आशाएं बलवती होती हैं.
तो वे प्रायः फलवती भी होती हैं .
जो आशा की डोर नहीं छोड़ता ,
वह प्रायः पार होता है .
और जो निराश हो गया,
वह भाग्य को कोसता हुआ रोता है.
(५ )
जीवन पहेली है .
ऐसी पहेली, जो कभी हल नहीं होती .
जिसका कोई सिरा पकड़ में नहीं आता ,
ठीक हवा की तरह .
लेकिन इस पहेली से जूझना ही जीवन है .
यह कभी हंसाती है, कभी रुलाती है .
कभी उलझाती , तो कभी खुद रास्ता दिखाती है .