कोयल की कूक और महकी सी अमराई
मोर की मुरलिया से बजती थी शहनाई
बाल व किशोरों की दौड़-धूप,चहल-पहल
छप्पर की बेलों पर चिडियों का कोलाहल
छप्पर की बेलों पर चिडियों का कोलाहल
रामू और बिरजू का यहीं कहीं ठांव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
नीम की निमौड़ी की कच्ची पक्की छमियां
सनई की फलियों की कल्लो की करधनिया
बांसों के झुरमुट की बंशी की आवाजें
बांसों के झुरमुट की बंशी की आवाजें
यहीं उस बड़े वाले पीपल का छाँव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
चमकीले खंजन की वह प्यारी सी फुदकन
बगुलों की कों-कों और गौरैया की थिरकन
तोतों के झुण्ड वे, कबूतरों की गुटर गूं वह
यहीं पर कौओं का होता कांव-कांव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था. खेतों की मेड़ें और धूल भरे गलियारे
पोखर वे, पनघट वे, गलियां वे चौबारे
नदी की कछारों में लोटती पड़ी भैसें
रामदीन काका का यहीं एक नाव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.गाय का रम्भाना और बकरी का मिमियाना
पेड़ों के पीछे वह सूरज का छिप जाना
चोखे का, दीनू का, घुरहू का, झीनू का
हम सब का आपस में कितना लगाव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था. गूलर की गंध और सोने सी पकी फसलें
बौर और फूलों पर बैठकर मधुप रस लें
सरसों का साग और मक्के की रोटी का
हाथ मथे मठ्ठे का आहा क्या चाव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
रमई की गैय्या वह, बकरियां फरीदन की
तीतर दुलारे के, मुर्गियां अमीरन की
सकटू की भेड़ों का साथ-साथ चलना वह
लगता नदी का सा मंथर बहाव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था. नदियों की रेती में गाँव का अखाड़ा वह
धोबीपाट, कालफांस दावों का नज़ारा वह
कसरती शरीरों की कुश्ती और डंड बैठक
फागू से मैंने यहीं सीखा पेंच-दांव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
बिरहा की, आल्हा की, चैता की तानें वे
कजरी के, फगवा के मोहक तराने वे
काका की पगड़ी और चुन्ना की फटी कमीज़
दादा की मूछों का अपना ही ताव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
बोझों में, मीलों तक फैले खलिहानों में
कितना था हेल-मेल गाँव के किसानों में
हलवाहे काका की प्यारी सी गोदी वह
ऊँच-नीच, भेद-भाव न कोई दुराव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
फागू से मैंने यहीं सीखा पेंच-दांव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
बिरहा की, आल्हा की, चैता की तानें वे
कजरी के, फगवा के मोहक तराने वे
काका की पगड़ी और चुन्ना की फटी कमीज़
दादा की मूछों का अपना ही ताव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
बोझों में, मीलों तक फैले खलिहानों में
कितना था हेल-मेल गाँव के किसानों में
हलवाहे काका की प्यारी सी गोदी वह
ऊँच-नीच, भेद-भाव न कोई दुराव था
यहीं कहीं मेरा वह छोटा सा गाँव था.
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