खुदा
ज़न्नत है आसमान में , ये तो पता नहीं ,
दोजख जमीन पर है , इसका इल्म है हमें।
जो आसमान पे है उस खुदा का खौफ क्या ,
खुद को खुदा समझने वाले आदमी से डर।
हमको लगता है, खुदा बन्दों से खुद खाता है खौफ ,
इसलिए चाहे जो हो , वह सामने आता नहीं।
कौन कहता है , खुदा आदमी ईजाद है,
आदमी खुद ही खुदा बनाने लगा है आजकल।
कौन करता है इबादत, सब तिजारत कर रहे ,
हर इबादतगाह में , हैं ख्वाहिशें पसरी हुई।
मन्नतों को जो इबादत का नाम देते हैं ,
वो सौदेबाज हैं , झूठी है इबादत उनकी।
-एस .एन .शुक्ल