जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या !
पीना तब तक छक कर पीना , छुप-छुप कर पीना, पीना क्या !
जब दिया ओखली में सर को
चोटों की परवाह क्या करना
जब एक बार चुन लिया मार्ग
फिर तूफानों से क्या डरना
क्या आंधी, वर्षा, अन्धकार, ऋतु मौसम और महीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या!
मेरी असफलताओं को लख
माना कुछ जन हँसते होंगे
मेरे पीछे जनचर्चा में कुछ
व्यंग बाण कसते होंगे
मैं फाड़-फाड़ कर सीता हूँ, उस फटे हुए को सीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या !
जो बीत गया उसका क्या दुःख
जब रात गई तो बात गई
क्या एक चोट को सहलाना
हमने हैं झेले घात कई
पी महादेव के प्याले को, अमृत प्याले का पीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या !
सीखा होगा तुमने पाकर
हमने खोकर के सीखा है
मीठे का स्वाद एक क्षण का
वह याद रहे जो तीखा है
औरों के लिए जिया मैं तो, खुद का जीना ही जीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या !
पीना तब तक छक कर पीना , छुप-छुप कर पीना, पीना क्या !
जब दिया ओखली में सर को
चोटों की परवाह क्या करना
जब एक बार चुन लिया मार्ग
फिर तूफानों से क्या डरना
क्या आंधी, वर्षा, अन्धकार, ऋतु मौसम और महीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या!
मेरी असफलताओं को लख
माना कुछ जन हँसते होंगे
मेरे पीछे जनचर्चा में कुछ
व्यंग बाण कसते होंगे
मैं फाड़-फाड़ कर सीता हूँ, उस फटे हुए को सीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या !
जो बीत गया उसका क्या दुःख
जब रात गई तो बात गई
क्या एक चोट को सहलाना
हमने हैं झेले घात कई
पी महादेव के प्याले को, अमृत प्याले का पीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या !
सीखा होगा तुमने पाकर
हमने खोकर के सीखा है
मीठे का स्वाद एक क्षण का
वह याद रहे जो तीखा है
औरों के लिए जिया मैं तो, खुद का जीना ही जीना क्या !
जीना तब तक हंस कर जीना, घुट-घुट कर जीना, जीना क्या !
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