हम भूमिपुत्र, हम कृषक वीर, हमसे जग में धन और धान्य.
हमने पाषाण सदृश धरती, पर भी निज हल को खींचा है
सूखी वसुधा के चरणों को, अपने श्रम जल से सींचा है
निर्जीव मृदा में हमने ही निज श्रम से पूरित किये प्राण
हम भारत के गौरव किसान, हम वसुधा के वैभव किसान.
हम कृष्ण सखा, अग्रज, हलधर बलदाऊ के अनुयायी हैं
भाषा, भूषा या जाति धर्म से परे कृषक हम भाई हैं
अपने पौरुष से जीवन हित जन-जन को करते अन्न दान
हम भरी दोपहर में खेतों की मिटटी से टकराते हैं
घुटनों तक पानी में घुसकर वर्षा में धान लगाते हैं
लड़ते हम शीत लहर से भी वह निशा प्रहर हो या बिहान
हम भारत के गौरव किसान, हम वसुधा के वैभव किसान
निज मातृभूमि का शीश जगत उन्नत करने की आशा है
पूरित हो धरा धान्य-धन से अपनी इतनी अभिलाषा है
कमाना, विश्व में पुनः बढे भारत का वैभव और मान
हम भारत के गौरव किसान, हम वसुधा के वैभव किसान
0 comments:
Post a Comment