रक्षक ही भक्षक बन बैठे, जन सेवक बटमार हो गये
हुई लुटेरों की पौ बारह, घर के पहरेदार सो गये.
उन्हें छोड़कर उनको पकड़ा
उनको छोड़ा उनको पकड़ा
किन्तु जिसे हमने अपनाया
उसने ही गर्दन को जकड़ा
हर चुनाव में थोथे वादे , नारों से दीवार भर गये
हुई लुटेरों की पौ बारह, घर के पहरेदार सो गये.
होली और दिवाली फीकी
फीकी ईद और बैसाखी
रक्षा सौदों बीच दलाली
क्या मतलब रखती अब राखी
क्रिसमस भी छुट्टी तक सीमित, फीके सब त्यौहार हो गये
हुई लुटेरों की पौ बारह, घर के पहरेदार सो गये.
अक्षम आयुध लेकर लड़ते
सीमाओं पर लड़ने वाले
खुद की पीठ ठोंकते शासक
मरते रहते मरने वाले
कौन दवा अब करे रोग की, वैद्य स्वयं बीमार हो गये
हुई लुटेरों की पौ बारह, घर के पहरेदार सो गये.
भय अब नहीं शत्रु से उतना
जितना मित्र घात का भय है
अविश्वास का घना अँधेरा
निज प्रतिछाया पर संशय है
करें भरोसा कैसे किस पर, मतलब के व्यवहार हो गये
हुई लुटेरों की पौ बारह, घर के पहरेदार सो गये.
भरी सभा में झूठ बोलते
हया हो गयी हवा हवाई
सावधान अब तो कुछ चेतो
ये सब मतलब के सौदाई
बड़े-बड़े नेता भी अब तो, लोलुप और लबार हो गये
हुई लुटेरों की पौ बारह, घर के पहरेदार सो गये.
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