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Monday, May 23, 2011

(16) जीवन

जीवन एक अबूझ पहेली
हर पग एक नई डगर है
हर मग पर उलझन अलबेली
जीवन एक अबूझ पहेली.

योग, घटाना, गुणा, भाग
या लघुत्तम, गुरुत्तम से सुलझाओ
नए सूत्र नित नई विधाएं
फिर-फिर जोड़ो और घटाओ
जोड़-जोड़ थक गयी जिंदगी
आखिर खाली हाँथ हथेली 
जीवन एक अबूझ पहेली.

अमरबेलि सी इसकी लड़ियाँ
अमरलता जैसी लतिकाएँ
ओर-छोर का पार न मिलता
चाहे जितना भी सुलझाएं
चक्रव्यूह की संरचना सी
हर क्षण यह करती अठखेली 
जीवन एक अबूझ पहेली.

गोद, पालना, किलकन, थिरकन 
बचपन, यौवन और बुढ़ापा 
जन्म, जवानी जरा, म्रत्यु तक 
मन से मिटा न पाए आपा
गठरी गांठ रहा मन बांधे
पाई ऐसी बुद्धि हठेली
जीवन एक अबूझ पहेली.

लम्बा सफ़र लक्ष्य अनजाना
प्रतिपल,प्रतिक्षण चलते जाना  
पथ समतल हो याकि विषम हो
सुख-दुःख हंसकर सहते जाना
छूट गए सब मेले पीछे
अंत समय रह गयी अकेली
जीवन एक अबूझ पहेली.


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