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Sunday, May 29, 2011

(40) अर्चना कैसे करूँ

अज्ञान हूँ मैं माँ, तुम्हारी अर्चना कैसे करूँ
तव वंदना की पंक्तियों में, भावना कैसे भरूं

तूने चराचर जीव, निज आलोक से झंकृत किये
दी मूक को वाणी तुम्हीं ने, और कवि को स्वर दिए
सब प्राणियों में ज्ञान का संचार तूने ही किया
तव कृपा बिन जागृत जगत की कल्पना कैसे करूँ
अज्ञान हूँ मैं माँ, तुम्हारी अर्चना कैसे करूँ

तू ज्ञानियों का ज्ञान है, विद्वतजनों की विद्वता
है प्रेरणा का स्रोत तू, अन्तः करण  की शुद्धता
तेरी कृपा से नित नए सोपान चढ़ता है मनुज
तव प्रेरणा से हीन कोई कामना कैसे करूँ
अज्ञान हूँ मैं माँ, तुम्हारी अर्चना कैसे करूँ.

हंसासना, पद्मासना हे मातु वीणा धारिणी
वाणी,गिरा, हे शारदे, मातेश्वेरी, स्वर साधिनी
अपनी दया का दान दे, कर मुझ अकिंचन पर कृपा
यूँ  चाह कर भी अम्ब तेरी साधना कैसे करूँ
अज्ञान हूँ मैं माँ, तुम्हारी अर्चना कैसे करूँ.

इहलोक क्या, परलोक क्या बिन ज्ञान सब निस्सार है
मतिमंद के उर की प्रभा तू सार का भी सार है
कुविचार के तम से घिरा संसार सारा है यहाँ
तू ही बता ऐसे जगत का सामना कैसे करूँ

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