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Thursday, April 19, 2012

(150) निभा लेते हैं /

दिल के जख्मों को तबस्सुम से छुपा लेते हैं  /
ज़िंदगी  जीते  हैं  ,  कैसे  भी  निभा  लेते  हैं /

टूटते  ख़्वाब  ,  तो  होता है  दर्द  हमको  भी  ,
हम तो किरचों को भी , पलकों पे उठा लेते हैं /

हम मगर वो भी नहीं , हाँ में हाँ मिलाते रहें ,
हर एक दर पे , जो सिर अपना झुका लेते हैं  /

तपिश के  डर  से , छाँव खोजते होंगे कोई ,
हम तपिश हो भी तो , शोलों को हवा देते हैं /

सरे - कोहसार  से ,  लाते उतार हैं  दरिया  , 
ठान लें गर ,  तो समंदर को सुखा देते  हैं  /

लोग डरते हैं , हवाओं के जोर से ,  पर हम 
आँधियाँ  आयें तो ,  दीवार गिरा  देते  हैं  /

                              - एस. एन. शुक्ल

 

Friday, April 13, 2012

(149) लौटि चलौ गाँउ ककुआ

हियाँ लागै न मनवा हमार ,  लौटि चलौ गाँउ ककुआ /
दिनु  बीतति  मनौ  पहारु ,  लौटि चलौ गाँउ ककुआ /

डगमगु  चालु हियाँ , बात गिटपिटिया ,
कान फोरू शोरु मचे , चलें फिटफिटिया ,
हुआं शान्ति औ सुख की बयारि ,  लौटि चलौ गाँउ ककुआ /
हियाँ  लागै  न  मनवा  हमार ,  लौटि चलौ गाँउ  ककुआ /

पानिहू बिकाल हियाँ , काँच के गिलसवा ,
सोनवा के भाऊ भवा ,  ऊख  केर रसवा , 
हुआं मुफ़त मां लुटब बहार , लौटि चलौ गाँउ ककुआ /
हियाँ लागै न मनवा हमार  , लौटि चलौ गाँउ ककुआ /

दुधवा के नाम पई बिकाल हियाँ पनिया ,
गोदिया के लाल पलें पूपसी की कनिया ,
हुआं दूध- दही की भरमार  ,  लौटि चलौ गाँउ ककुआ /
हियाँ लागै न मनवा हमार , लौटि चलौ गाँउ ककुआ /

छोरिहू  शहर  केरी , मेम  कै मेमनिया ,
बिटिया देहाति मानउ देबी महरनिया ,
हुआं सरगु  लगे  घरु- बारू , लौटि चलौ गाँउ ककुआ /
हियाँ लागै न मनवा हमार ,  लौटि चलौ गाँउ ककुआ /

                                         - एस. एन. शुक्ल  

Sunday, April 8, 2012

(148) ज़रा - ज़रा सा बढ़ो

ज़रा - ज़रा सा  जगो  तुम, ज़रा सा हम भी जगें ,
नयी  शमाएँ     रोशनी   की  ,  जलाई     जाएँ /

धर्म-ओ- मज़हब  के फासलों की दीवारों को गिरा ,
राह - ए - मिल्लत  नयी  तामीर  कराई  जाएँ /

नफरतें बो के सियासत हमें लड़ाती रही ,
पढ़े - बढ़े  तो मगर दूरियाँ  बढाती  रही  ,

कौम इनसान की कौमों के नाम पर तकसीम ,
भट्ठियां  नफरतों  की ,  आओ बुझाई  जाएँ / 

ज़रा - ज़रा सा बढ़ो तुम , ज़रा सा हम भी बढ़ें ,
ये  दूरियाँ  तमाम ,  मिल  के  मिटाई  जाएँ /

                                    - एस. एन. शुक्ल

Thursday, April 5, 2012

(147) ज़िंदगी इम्तिहान है यारों

ज़िंदगी रोज नया  इम्तिहान  है  यारों /
कभी जमीं तो कभी आसमान है यारों /

कभी हंसाती , कभी बारहा रुलाती है  ,
ज़िंदगी रूह का अदना मकाम है यारों /

कभी ये बजती है सरगम में, सात सुर में कभी ,
मगर  कभी  ,  ये  बेसुरी  सी  तान  है  यारों  /

ज़िंदगी तल्खियों भरी हो , फिर भी जीना है ,
अज़ीज़   जान  से  ज्यादा  , ये जान है यारों  /

ज़िंदगी तेरे बिना , कोई नियामत भी नहीं  ,
ज़िंदगी है ,  तो ये  सारा  जहान  है  यारों  /

                                  - एस. एन. शुक्ल 

Sunday, April 1, 2012

(146) उपचार क्या है ?

सोचिये कर्त्तव्य क्या है , और फिर अधिकार क्या है /
सोचिये  अन्याय , अत्याचार का  परिहार  क्या  है /
बहुत वातावरण  दूषित  है ,  न कहने  से  चलेगा  ,
सोचिये इस व्याधि , बाधा वृत्त का उपचार क्या है ?

मात्र आलोचक बने रहने से  कुछ होना नहीं  है /
याद रखना , और अब आगे विवश रोना नहीं है /
बस लुटेरों से सजग रहना व लड़ना वृत्त बनाओ ,
देश पर संकट हो तो , मुह ढाँपकर सोना नहीं है /

मात्र  अपने  ही लिए  जीना , नहीं जीना  है यारों /
चैन भारत का ,  दरिंदों  ने बहुत  छीना है  यारों  /
इसलिए अन्याय के प्रतिकार का संकल्प लो फिर ,
गरल का अब एक कतरा , भी नहीं पीना है यारों /

तुम बदल सकते हो सारा देश क्या , यह विश्व सारा /
भारती  के  लाल  जागो , विश्व  को  तुम  से सहारा /
जगदगुरु भारत, की संतति हो , स्वयं की शक्ति जानो ,
हे भगीरथ ! पलट दो ,  बहती हुई विपरीत धारा  /
                                       - एस. एन . शुक्ल