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Friday, May 27, 2011

(30) लेखनी

मूल्य क्या उस लेखनी का सत्यताजो कह न पाई
जो उठी यश गान में नर के, करूँ कैसे बड़ाई.

लेखनी वह जो निबलतम में नया पुरुषार्थ भर दे
जो समर्थों के ह्रदय में क्षमा, करुणा, प्यार भर दे
धार हो तलवार की जिसमें, विनय हो ,प्यार भी हो
हो मृदुलता अमिय की, उर में जलधि का ज्वार भी हो.

लेखनी वह जो अनाथों को शरण दे, प्रेरणा दे
बेसहारों को सहारा और जन को चेतना दे
हृदय में अनुराग भर दे, सौम्यता शुचिता बढ़ाये
पथ प्रदर्शित करे जन का, राह भटके को दिखाए.

लेखनी वह जो प्रगति पथ कंटकों से हीन कर दे
दंभ के, अन्याय के, मद के विभव को क्षीण कर दे
राजभय से भीत होकर शीश मत अपना झुकाए
शक्ति दे अन्याय के प्रतिकार  की, दृढ़ता बढ़ाये.

दीन की अभिव्यक्ति हो जिसमें, दलित का आर्त स्वर हो
शोषितों की वेदना के प्रति समर्पण भी प्रखर हो
अनाचारों से लड़े जो सदा जनगण की लड़ाई
है उसे शत-शत नमन आओ करें उसकी बड़ाई.




2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह ..बहुत सुन्दर और ओज पूर्ण रचना ... लेखनी कि महत्ता को बताती हुई .

S.N SHUKLA said...

MAHODAYA,
Dhanyvad. Aapne rachna sarahi.