जीवन ऐसे जियो , कि जैसे दीपक जीता है /
तब भी लड़ता , तेल पात्र जब होता रीता है /
भरा पात्र हो , दीपशिखा तब रहती तनी खड़ी ,
कीट - पतंगों की भी , उस पर रहती लगी झड़ी /
झप - झप करते आते वे , लेकिन जब टकराते ,
कहाँ तेज सह पाते , पंख जलाते , मर जाते /
पवन वेग भी , उसे बुझाने का प्रयत्न करता ,
पर दीपक आख़िरी साँस तक , उससे भी लड़ता /
तैल पात्र जब रीत रहा होता , तब भी दीपक ,
अंतिम बूँद निचुड़ने तक लड़ता रहता अनथक /
यह तो निश्चित है , ऊर्जा के शेष न रहने पर ,
जाना होगा सबको तजकर , यह शरीर नश्वर /
पर जो जीवन रहते , दीपक जैसा जलते हैं ,
वे अपने प्रकाश से , जग आलोकित करते हैं /
इसीलिये कहता हूँ , बस दीपक की भाँति जलो ,
शेष रहो , न रहो जग में , पर जब तक रहो जलो /
- एस . एन . शुक्ल
तब भी लड़ता , तेल पात्र जब होता रीता है /
भरा पात्र हो , दीपशिखा तब रहती तनी खड़ी ,
कीट - पतंगों की भी , उस पर रहती लगी झड़ी /
झप - झप करते आते वे , लेकिन जब टकराते ,
कहाँ तेज सह पाते , पंख जलाते , मर जाते /
पवन वेग भी , उसे बुझाने का प्रयत्न करता ,
पर दीपक आख़िरी साँस तक , उससे भी लड़ता /
तैल पात्र जब रीत रहा होता , तब भी दीपक ,
अंतिम बूँद निचुड़ने तक लड़ता रहता अनथक /
यह तो निश्चित है , ऊर्जा के शेष न रहने पर ,
जाना होगा सबको तजकर , यह शरीर नश्वर /
पर जो जीवन रहते , दीपक जैसा जलते हैं ,
वे अपने प्रकाश से , जग आलोकित करते हैं /
इसीलिये कहता हूँ , बस दीपक की भाँति जलो ,
शेष रहो , न रहो जग में , पर जब तक रहो जलो /
- एस . एन . शुक्ल