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Monday, May 23, 2011

(12) तेरे दृगों का नीर रानी

पीर अपनी ही रही मेरे ह्र्दय को चीर रानी
और उससे भी अधिक तेरे दृगों का नीर रानी .

आज तक हमको मिले विश्वास के पथ पर अँधेरे
मित्र बन छलते रहे हमको सदा मग के लुटेरे
पर बदल सकता नहीं अपनी प्रकृति मैं भी विवश हूँ
हो भले ताने खड़ा सिर पर समय शमसीर रानी
पीर अपनी ही रही मेरे ह्र्दय को चीर रानी .

मैं हिमालय का समूचा भर सिर पर ढो रहा हूँ
बांस जैसा था तना लेकिन धनुष अब हो रहा हूँ
घाव हो यदि एक तो उसको दिखाऊँ भी तुम्हें मैं
इस ह्रदय में बिंधे हैं अगणित विषैले तीर रानी
पीर अपनी ही रही मेरे ह्र्दय को चीर रानी.

कौन लाया कौन लेकर जायेगा वैभव यहाँ से
सब यहीं रह जाय खली हाँथ जाते सब जहाँ से
इसलिए जो है उसी में खुश रहो , खुशियाँ लुटाओ
बांटता कोई किसी का दुःख नहीं यह बात जानी
पीर अपनी ही रही मेरे ह्र्दय को चीर रानी .

पीर अपनी ही रही मेरे ह्र्दय को चीर रानी
और उससे भी अधिक तेरे दृगों का नीर रानी .




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