इसका हूँ मैं,यह मेरी है, मैं प्रियतम हूँ यह आली है
इस धन से मैं धनवान, यशस्वी हूँ, यह अति गुण वाली है
अरि के सम्मुख यह वज्र और मुझ निर्बल संग बलशाली है
कैसी भी विषम परिस्थिति हो करती हर दम रखवाली है.
इसका सिर हिमगिरि से ऊँचा, उर जैसे हिंद महासागर
इसका है लघुतम रूप किन्तु, यह जैसे गागर में सागर
इसमें सब रस, सब अलंकार, संधियाँ भाव हैं एक साथ
इसमें है माँ का वात्सल्य, भगिनी सा निर्मल प्यार भरा
मानिनी प्रेयसी का गौरव , पत्नी जैसा अनुराग भरा
इसका हर बूँद जलधि सा है, वसुधा को देता नयी आस
इसकी हर साँस वसंत लिए, भर देती जन-मन में हुलास.
इसमें अमूल्य जीवन निधि है, नित नयी आस भर सकती है
यह प्रलयंकर का महाताप, सर्वस्व नाश कर सकती है
यह सर्जक है,यह भंजक है, यह चंडी है, कल्याणी है
बधिरों के कानों का स्वर है, यह मूक मुनुज की वाणी है.
यह महाक्रान्तियों की जननी, है महा मिलन का सेतु यही
डूबते राष्ट्रों का जीवन, उत्कर्ष प्रगति का हेतु यही
इसका आदर कर राष्ट्र, प्रगति के शिखरों को छू लेते हैं
वे विश्व मध्य पूजे जाते , जो इसे समादर देते हैं.
इसकी ज्वाला के लगते ही, हर अनाचार जल जाता है
इसका पाकर के वरद हस्त, मानव कुंदन बन जाता है
छूकर मसि कागज मात्र, कलम यदि महाक्रान्ति कर सकती है
तो नयी दिशा की वाहक बन विश्व में शांति भर सकती है.
यह दुर्गा है, कल्याणी है, हम सब मिल इसे प्रणाम करें
हे रचनाकारों आओ, जनमानस में नव आयाम भरें.
इस धन से मैं धनवान, यशस्वी हूँ, यह अति गुण वाली है
अरि के सम्मुख यह वज्र और मुझ निर्बल संग बलशाली है
कैसी भी विषम परिस्थिति हो करती हर दम रखवाली है.
इसका सिर हिमगिरि से ऊँचा, उर जैसे हिंद महासागर
इसका है लघुतम रूप किन्तु, यह जैसे गागर में सागर
इसमें सब रस, सब अलंकार, संधियाँ भाव हैं एक साथ
इसकी स्मृतियाँ हैं अनंत , रहतीं सक्रिय दिन और रात.
इसमें है माँ का वात्सल्य, भगिनी सा निर्मल प्यार भरा
मानिनी प्रेयसी का गौरव , पत्नी जैसा अनुराग भरा
इसका हर बूँद जलधि सा है, वसुधा को देता नयी आस
इसकी हर साँस वसंत लिए, भर देती जन-मन में हुलास.
इसमें अमूल्य जीवन निधि है, नित नयी आस भर सकती है
यह प्रलयंकर का महाताप, सर्वस्व नाश कर सकती है
यह सर्जक है,यह भंजक है, यह चंडी है, कल्याणी है
बधिरों के कानों का स्वर है, यह मूक मुनुज की वाणी है.
यह महाक्रान्तियों की जननी, है महा मिलन का सेतु यही
डूबते राष्ट्रों का जीवन, उत्कर्ष प्रगति का हेतु यही
इसका आदर कर राष्ट्र, प्रगति के शिखरों को छू लेते हैं
वे विश्व मध्य पूजे जाते , जो इसे समादर देते हैं.
इसकी ज्वाला के लगते ही, हर अनाचार जल जाता है
इसका पाकर के वरद हस्त, मानव कुंदन बन जाता है
छूकर मसि कागज मात्र, कलम यदि महाक्रान्ति कर सकती है
तो नयी दिशा की वाहक बन विश्व में शांति भर सकती है.
यह दुर्गा है, कल्याणी है, हम सब मिल इसे प्रणाम करें
हे रचनाकारों आओ, जनमानस में नव आयाम भरें.
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