राजा एक छिपा बैठा था गिरी गह्वर के अन्दर
तीन युद्ध वह हार चुका था शत्रु पक्ष से लड़कर.
शत्रु पक्ष से भीत निराशा थी अंतर्मन छाई
शिला खंड से तभी फिसलती चींटी पड़ी दिखाई.
खाद्य पदार्थ दबा था मुहँ में किन्तु न उसने छोड़ा
गिरकर संभली पुनः लक्ष्य पत्थर पर अपना मोड़ा.
पिछली गति से तेज़ चढ़ रही थी इस बार शिला पर
अर्ध मार्ग से पुनः फिसल वह गिरी भूमि पर आकर.
ऐसे पांच प्रयास किये पर सफल न वह हो पाई
छठवीं बार कड़ी मेहनत कर वह ऊपर तक आई.
देख रहा था राजा यह सब मन्त्रमुग्ध सा होकर
जो निराश बैठा था इस क्षण अपना सब कुछ खोकर.
चींटी की यह लगन देख रजा में पौरुष आया
इस घटना ने आशा दृढ़ता का संकल्प जगाया.
सोचा भाग्य सहारे रहने वाला ही रोता है
यत्न निरंतर करने वाला सदा जयी होता है.
वह बाहर आया फिर बिखरे सूत्र संभाले सारे
गज, तुरंग, रथ सैन्य और आयुध सब नए सवाँरे.
नई शक्ति सहस से वैरी राजा पर चढ़ आया
सत्ता मद में चूर शत्रु को रण में मार गिराया.
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