शकर कैसे भला छोड़ेगी पीछा , और क्यों छोड़े ,
तुम्हीं थे जिसने कैथे और जामुन काट डाले हैं /
तुम्हीं कहते ज़हर फैला है चारों ओर नफ़रत का ,
तुम्हीं ने आस्तीनों में , विषैले नाग पाले हैं /
लबारों और मक्कारों को , कितनी बार परखोगे ,
ये तन से खूब उजले हैं , मगर अंदर से काले हैं /
वो छत्तीस लाख के सन्डास में , पेशाब करते हैं ,
यहाँ छब्बीस रुपये रोज की आमद भी लाले हैं /
ज़बानें लपलपाते भेड़िये हैं , ये दरिंदे हैं ,
ये आदमखोर हैं , मज़लूम ही इनके निवाले हैं /
उठाओ आँधियाँ , अब और रस्ता भी नहीं कोई ,
सभी बेपर्द कर डालो , जो शैतानों की चाले हैं /
- एस . एन . शुक्ल
तुम्हीं थे जिसने कैथे और जामुन काट डाले हैं /
तुम्हीं कहते ज़हर फैला है चारों ओर नफ़रत का ,
तुम्हीं ने आस्तीनों में , विषैले नाग पाले हैं /
लबारों और मक्कारों को , कितनी बार परखोगे ,
ये तन से खूब उजले हैं , मगर अंदर से काले हैं /
वो छत्तीस लाख के सन्डास में , पेशाब करते हैं ,
यहाँ छब्बीस रुपये रोज की आमद भी लाले हैं /
ज़बानें लपलपाते भेड़िये हैं , ये दरिंदे हैं ,
ये आदमखोर हैं , मज़लूम ही इनके निवाले हैं /
उठाओ आँधियाँ , अब और रस्ता भी नहीं कोई ,
सभी बेपर्द कर डालो , जो शैतानों की चाले हैं /
- एस . एन . शुक्ल