About Me

My photo
Greater Noida/ Sitapur, uttar pradesh, India
Editor "LAUHSTAMBH" Published form NCR.

हमारे मित्रगण

विजेट आपके ब्लॉग पर

Saturday, May 28, 2011

(33) पत्ता भी नहीं हिलेगा

लाद कुल्हाड़े गुजर रही थी जंगल से एक गाड़ी
छोटे पेड़ सोच यह भागे आई विपदा भारी.

बीच राह में एक बड़ा बूढा वट वृक्ष खड़ा था
छोटे वृक्षों की तुलना में अनुभव जिसे बड़ा था.

उसने पूछा आखिर तुम सब कहाँ जा रहे भागे
कुछ पीछे आ रहे और कुछ निकल चुके हैं आगे?

तब उनमें से एक पेड़ ने बरगद को बतलाया
जंगल में आ चुके कुल्हाड़े हम पर संकट आया.

बरगद बोला क्या उनसे अपना भी बन्धु मिला है
अर्थ, कुल्हाडों के अन्दर लकड़ी का बेंट पिला है?

नहीं अकेले हैं वे, स्वर समवेत सभी का आया
तब बरगद ने उन्हें धैर्य देकर  ऐसे समझाया.

याद रखो जब तक दुश्मन से अपना नहीं मिलेगा
तब तक तुम्हें काटना क्या पत्ता भी नहीं हिलेगा.  

0 comments: