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Wednesday, January 9, 2013

(175) कभी रास्ता नहीं मिलता

               कभी रस्ता नहीं मिलता

 

जमीं  महगी , दुकाँ   महगी , दवा महगी, दुआ महगी ,
फ़कत इनसान के, कुछ भी यहाँ सस्ता नहीं मिलता।

कभी जोरू के ताने, तो कभी बच्चों की फरमाइश ,
गिरस्ती में  वही हर रोज जैसी  जोर आजमाइश ,

गरीबों की किसी बस्ती में, जब भी झाँक कर देखो ,
किसी घर में बशर कोई, कहीं हँसता नहीं मिलता।

सड़क पर , चौक - चौबारों, मदरसों, अस्पतालों  में,
मस्जिद-ओ-चर्च, गुरुद्वारों में, मंदिर में, शिवालों में,

जिधर देखो, वहीं बस भीड़ ख्वाहिशमन्द सी लेकिन,
कहीं  इनसान से इनसान का,  रिश्ता नहीं मिलता।

ये सारी  ज़िंदगी  की  दौड़ का , हासिल यही अक्सर ,
कभी मंजिल नहीं मिलती , कभी रस्ता नहीं मिलता।

                        -एस .एन .शुक्ल 
ब्लॉग लिंक :snshukla.blogspot.com