हैं कहाँ वे कवि निराले, और वह कविता कहाँ है
उस नुकीली कलम वाले और वह कविता कहाँ है
हाँ वही कविता-
कि जिसकी साँस में पुरवाइयाँ थीं
और जिसकी गंध लेकर बौरती अमराइयाँ थीं
और वह कविता-
कि जिससे स्वाभिमानी स्वर जगे थे
याकि जिसकी चेतना से, डर फिरंगी तब भगे थे
कर गई जो देश को परतंत्रता से मुक्त
वह कविता कहाँ है?
हाँ वही कविता-
कि जिसकी अग्नि से सूरज बना था
और जिसके स्वाभिमानी बोल सुन गिरिवर तना था
रंग से जिसके हंसी थी घास, उपवन मुस्कुराये
गंध से जिसकी खिले थे फूल, पौधे लहलहाए
कर गयी सारी धरा को धान्य-धन से युक्त
वह कविता कहाँ है?
हाँ वही कविता-
कि जिसको सुन भ्रमर दल गुनगुनाये
कूक जागी कोकिला की, और पक्षी चेह्चेहाये
और वह कविता
कि जिसकी हंसी से शैशव झरा था
मुस्कुराहट में उमंगें, भ्रकुटि में तांडव भरा था
जो सदा दुःख और सुख में भी रही संयुक्त
वह कविता कहाँ है?
हाँ वही कविता-
जिसे सुन फड़क उठतीं थीं भुजाएं
विजित होते देश थे, थीं गूंजती जय से दिशाएं
और वह कविता
कि जिसमें ईद,होली का मिलन था
दीपमाला की प्रभा थी, ज्योति से लोहित गगन था
थी जहाँ हर वर्ग के प्रति हृदय में अनुरक्ति
वह कविता कहाँ है?
2 comments:
सार्थक प्रश्न ..झकझोर देने वाली रचना
SANGEETA JI
Aapke comment ke liye bahut-bahut dhnyvad.
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