तब भी यहाँ सभी धर्म, जातियां और सम्प्रदाय थे
नगर हमारी संस्कृति के वाहक और सभ्यता के पर्याय थे
सभी लोग-
पीर की मजार पर चादर चढाते थे
होली में रंग खेलते, ईद पर गले मिलते
और बैसाखी पर नाचते गाते थे .
किन्तु आज-
यहाँ भी लोगों के सोच बौने हो गए हैं
हम दायरों में सिमटकर
राजनैतिक बाज़ीगरों के हाथों के खिलौने हो गए हैं. नगर
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