वह पिता और पति, पुत्रों क्या , जन - जन के द्वारा त्रस्ता है /
बचपन , यौवन से अंत तलक , नारी की नियति विवशता है /
था छला अहिल्या को जिसने, वह देवराज कहलाता है,
जननी हंता उस परशुराम का , सारा जग यश गाता है,
सोलह हजार रानी वाला , भगवान कहाया जाता है ,
पत्नी का दाँव लगाने वाला , धर्मराज पद पाता है ,
केवल नारी के ही जीवन में, यह कैसी परवशता है ?
बचपन , यौवन से अंत तलक , नारी की नियति विवशता है /
हर युग में नारी का शोषण, इतिहास गवाही देता है ,
त्रेता , द्वापर में भी उसका , चीत्कार सुनायी देता है ,
उस शेषनाग अवतारी ने , काटे नारी के नाक- कान ,
रावण सा पंडित , ज्ञानी , छल से पर नारी हर लेता है ,
कापुरुष तलक बनकर भुजंग, बस नारी को ही डसता है /
बचपन , यौवन से अंत तलक , नारी की नियति विवशता है /
सीता की अग्नि परीक्षा ली , फिर भी न राम ने अपनाया ,
अम्बा को भीष्म महाबल से , क्यों भरी सभा से हर लाया ?
क्या द्रुपद सुता थी वस्तु , कि जिसको पाँच भाइयों ने बाँटा ?
पुरुषार्थ , विवश अबला पर ही , क्यों दुस्साशन ने अजमाया ?
अवसाद, घृणा या तिरस्कार से ही नारी का रिश्ता है /
बचपन , यौवन से अंत तलक , नारी की नियति विवशता है /
था पुरुष प्रधान समाज आदि से, नारी भोग्या कहलाई ,
बहुपत्नी नर कर लेता था, नारी कब बहुपति कर पायी ?
पति चिता मध्य पत्नी जलती थी, पति पर नहीं बाध्यता थी ,
नर रहा सदा ही मूल्यवान , नारी का जीवन सस्ता है /
बचपन , यौवन से अंत तलक , नारी की नियति विवशता है /
वस्तु की भाँति बिकती थीं वे, ग्रंथों में इसका लेखा है ,
धन, धरा और नारी के कारण , ही युद्धों को देखा है ,
बालिका जन्मते ही , उसका वध कर देते थे राजपूत ,
घर की चहारदीवारी ही, उसकी बस सीमा रेखा है ,
पर दया - धर्म , ममता , मृदुता , तब भी नारी में बसता है /
बचपन , यौवन से अंत तलक , नारी की नियति विवशता है /
सडकों, गलियों में छेड़छाड़ , भीड़ों में शीलहीन फिकरे ,
क्या राजनीति, क्या लोकरीति , नारी चरित्र के ही जिकरे ,
क्यों नारी के ही हिस्से में, ह्त्या, अपहरण , बलात्कार ,
ज्यों चील झपटती चूहों पर, ज्यों कबूतरों पर हों शिकरे ,
नारी भ्रूणों की ह्त्या कर , नर फिरता बना फरिस्ता है /
बचपन , यौवन से अंत तलक , नारी की नियति विवशता है /