वे जो वास्तव में कविता लिखते हैं, उनके साथ उनके अपने ही घर में क्या गुजरती होगी , इस कल्पना को मैंने कविता के माध्यम से ही शब्द देने का प्रयास किया है .अपने पाठकों का आशीर्वाद और सहयोगियों की टिप्पणी चाहूँगा .
हे मेरे प्रिय कवि सजन ,अब काव्य रचना भूल जाओ,
ध्यान से सुनना हमारी बात ,घर में मन लगाओ .
घर-गृहस्थी में बहुत कुछ चाहिए ,यह जान लो तुम ,
सिर्फ कविता से न चलना काम ,अब यह मान लो तुम.
आज तक तुम थे अकेले, जिस तरह चाहा रहे हो ,
काव्य गंगा में नहाए , मगन हो बहते रहे हो .
पर नहीं अब वह चलेगा , जो कहूं करना पड़ेगा ,
बात न मानी अगर , तो खुद किया भरना पड़ेगा .
अब तुम्हारा गीत हूँ मैं , अब तुम्हारी प्रीत हूँ मैं ,
आज से रचना तुम्हारी मैं ,सुगम संगीत हूँ मैं .
मैं तुम्हारी कामना, मैं ही तुम्हारी साधना हूँ ,
मैं तुम्हारा स्रजन पथ हूँ धर्म, व्रत आराधना हूँ .
आज से कविता तुम्हारी, छंद रस हूँ, भाव हूँ मैं ,
कोकिला की कूक, वासंती पवन हूँ ,छांव हूँ मैं .
दीन की अभिव्यक्ति पर लिखते रहे ,लेकिन मिला क्या ,
जो अकिंचन हैं स्वयं ही,वे तुम्हे देंगे सिला क्या .
पेट को रोटी नहीं जिनके , तुम्हें क्या दे सकेंगे ,
हाँ तुम्हीं से सिरफिरे कुछ ,वाहवाही भर करेंगे .
शब्द के ही शर चलाते ,आज तक गाते रहे हो,
और बदले में निरर्थक शब्द भर पाते रहे हो .
शब्द सरिता में नहा सकते हो, खा सकते नहीं हो,
आज की असली जरूरत , कभी पा सकते नहीं हो .
कल नहीं यह आज है , जो कठिन, कर्कश,तीत भी है,
अर्थ युग में सिर्फ पैसा ही सगा है, मीत भी है .
यह नहीं कहती की कविता मत लिखो , पर लिखो ऐसा,
जो बिक़े बाज़ार में महंगा ,मिले कुछ दाम-पैसा .
आज से कविता नहीं ,दायित्व पहला मैं तुम्हारा ,
इसलिए काव्यत्व छोडो ,कुछ नया सोचो सहारा .
छोड़कर कविता-कहानी , अर्थ के नवगीत गाओ,
अन्यथा मुश्किल पड़ेगी ,समय रहते चेत जाओ .
समय के संग-संग चलो ,सत्ता समर्थक गीत गाओ ,
रात को दिन, आम को इमली कहो ,पैसा कमाओ .
काव्य को गंगा नहीं-प्रिय, काव्य को धंधा बनाओ ,
बस समर्थों को सराहो ,उन्हीं के यशगीत गाओ .
1 comments:
SHUKLA JI
paisa sab kuchh nahin hai, lekin bahut kuchh hai. Bina iske apne sath-sath parivar ka palan-poshan nahin ho sakta. Aur jahan tak koshish kariye apne kary ke sath apna parivaar ka bhi dhyan rakhiye.
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