इमारत जब नयी तामीर करनी हो तो अक्सर ही ,
पुरानी कुछ दबी यादें , उभरकर आ ही जाती हैं /
अगर खुद का बनाया आशियाँ , खुद तोड़ना हो तो ,
वो यादें आँख में , शबनम कभी छलका ही जाती हैं /
मगर जब फिर उसी दर पर, बनाना हो नया घर तो ,
पुराना घर, दर- ओ- दीवार सब कुछ तोड़ना होगा /
ये माना पीढ़ियाँ - दर- पीढ़ियाँ गुज़री हैं इस घर में ,
मगर उस भावना, उस मोह को अब छोड़ना होगा /
वही सिद्धांत, फिर से मुल्क की तामीर की खातिर ,
ज़रा सा संगदिल होकर, ज़रा सा सख्त हो अपना /
नया कुछ भी बनाने में , बहानों की नहीं चलती ,
हकीकत में नहीं बदलेगा , नवनिर्माण का सपना /
है जिस रस्ते पे इस दम मुल्क , वह मंजिल से भटका है ,
वहां रोड़े, अँधेरे हैं, बहुत शातिर लुटेरे हैं /
फिर उस मंजिल का क्या मतलब, जहां मकसद न हो हासिल ,
जहां इन्साफ मुश्किल हो ,जहां बस गोल घेरे हैं /
पुरानी रूढ़ियाँ या घर, बदलना ही उन्हें बेहतर ,
जो करना है, वो करिए आज , कल- परसों पे मत टालो /
निकल आओ अंधेरों से , अँधेरे दर्द देते हैं ,
नया फिर से बनाओ घर, पुराना सब बदल डालो /
4 comments:
मेरे लिए गाना एक टेढ़ी खीर है
पर इस रचना के बहाव में
स्वर लगे अच्छे लगे |
बधाई भाई --
सुन्दर भाव--सन्देश सुन्दर
हमारा देश सुन्दर
Dhanyawad Ravikar ji
जी पुराना भी, इतने काम का होता है कि आप सोच भी नहीं सकते हो।
Sandeep Panwar ji,
purana kam ka hota hai lekin kooda nahin ,comment ke liye dhanyawad,
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