भारती के लाल जागो,आज फिर भारत दुखी है .
अनाचारों से भरे फिर मेघ मडराने लगे हैं,
फिर वही वहशी ,दरिन्दे, देश पर छाने लगे हैं.
वे विदेशी थे,लड़े जिनसे,जिन्हें हमने भगाया,
आज देशी पालतू भी, खुद पे गुर्राने लगे हैं.
हे भरत के अंश,उल्टी धार यह कब तक बहेगी,
सच खड़ा नंगा है, लेकिन चोर, व्यभिचारी सुखी है
हाथ जोड़े थे खड़े कल,आज वे उठने लगे हैं,
सच दबाने के लिए, सब चोर फिर जुटने लगे हैं.
हर तरफ गहरा कुहासा है,धुंआ फैला हुआ है,
इस धुएं से सत्यता के, प्राण भी घुटने लगे हैं.
हर अनाचारी से कह दो , होश में आ जाय वरना,
उबल सकता है , ह्रदय में जो छुपा ज्वालामुखी है.
डालियाँ चुभने लगें खुद के, तो उनको छांट डालो,
हाथ अपना भी अगर सड़ने लगे,तो काट डालो.
किन्तु उससे भी जरूरी है की पहले भ्रांतियों की,
भेदभावों की ये गहरी खाइयां सब पाट डालो.
राष्ट्र के हित दुष्ट का मर्दन,ये गीता में लिखा है,
फिर उठा गांडीव अर्जुन,महाभारत छिड़ चुकी है .
5 comments:
हाथ जोड़े थे खड़े कल,आज वे उठने लगे हैं,
सच दबाने के लिए, सब चोर फिर जुटने लगे हैं.
हर तरफ गहरा कुहासा है,धुंआ फैला हुआ है,
इस धुएं से सत्यता के, प्राण भी घुटने लगे हैं.
हर अनाचारी से कह दो , होश में आ जाय वरना,
उबल सकता है , ह्रदय में जो छुपा ज्वालामुखी है.
vastav me yudh me ladne yogya prastuti.
बहुत ओज पूर्ण रचना ...
संवेदना से भरी मर्मस्पर्शी रचना ....
बहुत खूब .. ओज़स्वी रचना है ... ललकार रही है ...
Shalini ji,
Sangeeta ji,
Dr. Sharad ji,
Digambar Nasava ji
aap sab ne rachana pasand kee,aap sab ka hriday se aabhari hoon.
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