शायद तब -
रही होगी यह परम्परा .
किन्तु पांच पतियों की पत्नी द्रोपदी
शरीर का सुख तो हो सकती है ,
किसी की अर्धांगिनी नहीं हो सकती .
युधिष्ठिर ,भीम,अर्जुन,नकुल, सहदेव,
सबकी सहचरी,सबकी अंकशायिनी ,
महाभारत की अति विशिष्ट पात्र .
महाविनाश की नायिका .
जिसके कारण,जिसके हठ पर,
ज्येष्ठ-नेष्ट , अग्रज और सहोदर -
आपस में ही लड़े -
एक-दूसरे का बहाया रक्त
अपनों का वध कर खुश हुए .
क्योंकि उसी में प्रिया की खुशी थी .
माना की -
दुर्योधन था अनीति के पथ पर ,
उसमें सत्ता का नशा , शक्ति का दर्प था .
किन्तु-
पांच महाबलियों की प्रिया होने के कारण ,
क्या द्रोपदी में -
अनावश्यक दर्प नहीं था.
वह कर्ण जैसे - दानी, स्वाभिमानी और महात्मा को
सूत पुत्र कह सकती थी .
तो फिर -
कर्ण का उसके चरित्र पर -
उंगली उठाना गलत क्यों था .
छल से या बल से -
पांडवों ने जीती महाभारत .
इसलिए उनके सारे अपराध क्षम्य .
क्योंकि यह परम्परा है -
समरथ को नहिं दोष गोसाईं
.इसीलिये तो-
द्रोपदी को चिराकुमारी कहा गया .
उसे प्रातः स्मरणीय पञ्च कन्याओं में
दूसरा स्थान दिया गया .
आखिर पांच महाबलियों की पत्नी के -
सम्मान पर कौन उठा सकता है उंगली .
यही आज का भी सच है .
किसी द्रोपदी के चरित्र पर,
कोई उंगली नहीं उठा सकता .
और अगर उठाएगा -
तो कर्ण की तरह निहत्था मारा जाएगा .
वह भी बन सकती है साम्राज्ञी -
बशर्ते वह -
बाहुबलियों/समर्थों की अंकशायिनी हो .
इसलिए हे द्रोपदियों -
विशिष्ट बन चुकी द्रोपदियों से प्रेरणा लो .
तुम भी खोजो ऐसे पति ,
आखिर तुम्हें भी तो साम्राज्य चाहिए .