वो तब नहीं, वो कल नहीं, वो आज चाहिए हमें.
स्वतंत्रता के वक्त के, वो सब्जबाग क्या हुए ,
प्रजा का तंत्र, लोकतंत्र के वो राग क्या हुए,
वतन के उन शहीदों का लहू पुकार कह रहा ,
फिर इन्कलाब और वही महाज चाहिए हमें.
स्वराज चाहिए हमें,सुराज चाहिए हमें.
जो न्याय कर सके नहीं, नहीं वो तंत्र चाहिए,
असत्य से भरा हो जो, नहीं वो मंत्र चाहिए ,
ये गोलमाल,भ्रष्टता ,नृशंसता,अशिष्टता
भरा हुआ नहीं ये काम -काज चाहिए हमें.
स्वराज चाहिए हमें,सुराज चाहिए हमें.
ये चोर-चोर भाइयों का खेल अब न चाहिए ,
ये दलबदल, दलों की रेल-पेल अब न चाहिए,
गुनाह से भरे हुए ये हुक्मरान की जगह,
जो न्याय के लिए लड़े, मिजाज चाहिए हमें.
स्वराज चाहिए हमें,सुराज चाहिए हमें.
जो मंदिरों के , मस्जिदों के नाम पर लड़ा रहे ,
जो धर्म, जाति, वर्ग भेदभाव को बढ़ा रहे ,
उन्हें भी ठोकरों पे लो ,जो स्वार्थ से भरे हुए ,
फिर एक नेक , संगठित समाज चाहिए हमें.
स्वराज चाहिए हमें,सुराज चाहिए हमें.
अधूरे स्वप्न रह गए जो वीरवर सुभाष के ,
जो गाँधी, नेहरू,शास्त्री ,पटेल, जयप्रकाश के,
वो भार है हमारे सिर , प्रतिज्ञाबद्ध हो कहो ,
वो बापू वाला सिर्फ रामराज्य चाहिए हमें ,
स्वराज चाहिए हमें,सुराज चाहिए हमें.
4 comments:
स्वराज चाहिए हमें बहुत शानदार गीत है | कवि जी को बहुत बहुत बधाई |
jales ji,
aapko kavita(prayan geet)pasand aayee .aabhar aur dhanyawad .
S.N.Shukla
बहुत ओजपूर्ण भाव लिए सुन्दर गीत ...स्वराज्य के साथ सुराज भी चाहिए ...
bahut sundar rachna.
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