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Saturday, June 11, 2011

(59) यह कैसा है लोकतंत्र

बेलगाम नौकर, जनसेवक, मालिक दर-दर रिरियाता है.
यह कैसा है लोकतंत्र ,जिसमें बस लोक छला  जाता है.

हे मतदाता खुद को जानो,खुद अपनी ताकत पहचानो,
देश लुटेरों के हाथों में ,मत सौंपो, जागो दीवानों.
बहुत हुआ अब सहन न होता, इन्हें बताना ही यह होगा,
लोकतंत्र के सिंहासन का , असली मालिक मतदाता है.

दान नहीं, हम भीख दे रहे, सीख इसलिए दे सकते हैं,
जिम्मेदारी सौंपी हमने, तो हिसाब भी ले सकते हैं.
नेता पण्डे नहीं , और यजमान नहीं हम हैं घाटों के,
यह एहसास करा दो, मतदाता ही भारत निर्माता है .

इंसानों से इतर नहीं ये,मत इनको भगवान् बनाओ,
क्या जाने कैसे निकलेंगे, मत फूलों के हार पिन्हाओ.
बदलो-परखो, परखो-बदलो, अब अपना सिद्धांत बनाओ,
क्यों हर बार लुटेरा, रहजन ही जनप्रतिनिधि बन जाता है.

हर चुनाव में गलती अपनी और बाद में चिल्लाते हैं,
वे ठगते हैं माना, लेकिन हम क्यों स्वयं ठगे जाते हैं .
गलती एक बार हो सकती , बार-बार ऐसा क्यों होता,
सोचो क्यों अपना ही सेवक, मालिक जैसा गुर्राता है . 

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना

shikha varshney said...

सार्थक रचना .सही दिशा में दिखाती हुई.

S.N SHUKLA said...

Sangeeta ji,
Shikha ji,
rachana pasand aayee, aabhari hoon,dhanyawad