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Wednesday, June 22, 2011

(67) कैसे हैं दीवाने लोग ?

आज इधर, कल उधर बैठकर गढ़ते नए बहाने लोग ,
अजब सियासत खेल है, जिसमें  बदलें रोज ठिकाने लोग /

इस पाले में उनको कोसें, उस पाले से इन पर वार ,
पल- पल में ईमान बदलते, सत्ता के दीवाने लोग /

कुर्सी की खातिर इज्ज़त क्या , देश भाड़ में झोंक रहे ,
बेशर्मी की हदें लांघते ,जैसे हों बौराने लोग /

कल खाते थे कसम मिटाने की जिसको , अब उसकी ही,
गोदी में बैठे हैं गाते , फिर से नए तराने लोग /

भीड़ जुट रही उनके पीछे , जिनका कोई कयाम नहीं,
अपने पैर कुल्हाड़ी मारें , कैसे हैं दीवाने लोग /

इन कौवों, गीधों के चंगुल से , गुलशन अवमुक्त  करो ,
उनके ही ये चोंच मारते, जिनके चुगते दाने लोग /   

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक प्रस्तुति ...


कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

S.N SHUKLA said...

Dhanyawad, Sangeeta ji

aapake sahyog aur aapake dwara kiye jane wale utsahvardhan ka bahut aabhari hoon.
S.N.Shukla