नए घर में ,नए परिवेश में आकर भी खुश रहना
पती को देवता ,देवर को भाई ,और घरवाले सगे जैसे
समझकर भी ,उलाहने और तानों को सहज सहना .
जरा सोचो बहू भी थी किसी की लाडली बेटी
वो अपने छोड़ ,क्या सपने सजाये साथ लाई है
जहाँ जन्मी ,पली ,खेली ,बढ़ी उनसे अलग होकर
बहाती आंसुओं की धार ,लेकर प्यार आयी है
किसी की और की बेटी , बिना जाये,बिना पाले
तुम्हारी बन गयी बेटी , खुदा का शुक्रिया करिए
तुम्हारी खुद की बेटी भी , किसी घर की बहू होगी
जरा इस बात का भी ध्यान थोड़ा कर लिया करिए
वो लक्ष्मी है,रुलाओगे तो निश्चय रूठ जायेगी
वो पूर्णा है ,रहेगी खुश तो सारा घर सजायेगी
बहू,बेटी से हरगिज कम नहीं होती है ,बढ़कर है
तुम्हारे वंश की नवबेलि को आगे बढायेगी .
3 comments:
वो लक्ष्मी है,रुलाओगे तो निश्चय रूठ जायेगी
वो पूर्णा है ,रहेगी खुश तो सारा घर सजायेगी
बहुत पावन मन के भाव ...
और उतनी ही सुन्दरता से कविता में ढाले हैं ...!!
बधाई स्वीकारें .
anupama ji
kavita achhi lagi,aur apaki sarahna se mujhe utsahvardhan.
aabhar avam dhanyawad.
S.N.Shukla
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