बड़ी-बड़ी क्रांतियाँ हुयी हैं .
इसीलिये -
कलम को सबसे बड़ा हथियार माना जाता है .
लेकिन यह हथियार उन्हीं को डराता है,
जिनका -
स्वाभिमान, सम्मान और संवेदनशीलता से नाता है.
दुश्चरित्र ,निर्लज्ज और संवेदनहीन लोगों को ,
भला कलम से कौन डरा पाता है .
और उनको भी-
जिनका बस स्वार्थ से ही नाता है .
इसीलिये हर कलमवाला -
जूतेवाला बनने पर आमादा है
यद्यपि कुछ कथित कलमकार -
जूते चाटने में ज्यादा यकीन रखते हैं .
और बदले में सत्ता की जूठन चखते हैं .
फिर भी जूता चल रहा है
और यह जिन पर चलता है
उनसे भी ज्यादा -
उनके तलवे चाटनेवालों को खल रहा है .
पता नहीं , जूता चलाने और जूता दिखाने में -
आक्रोश है या खबर बनने की चाह ,
लेकिन बार-बार खबर बनता है जूता .
जूता दिखाने वाला पिटा -
और जूते की पिटाई कर , कुछ लोग खुश हैं ',
वे सन्देश दे रहे हैं की , अब जो जूता दिखाएगा
उसके साथ , ऐसा ही सलूक किया जाएगा .
फिर लोग कलम को , क्यों बनायेंगे जूता
वे कलम को बन्दूक बनायेंगे
खुद लोगों की पकड़ की जद से -
बाहर रहकर दनदनाएंगे .
अर्थात नक्सल और माओवाद की नयी पौध -
तब कौन लडेगा उनसे
और तब क्या वे रोके जा पायेंगे .
इसलिए हे स्वयंभू विधाताओं ,
अपने अन्तहकरण में झांको -
और गंभीरता से सोचो .
भारत के सुखमय भविष्य के लिए -
कलम को बन्दूक बनने से रोको .
और गंभीरता से सोचो .
भारत के सुखमय भविष्य के लिए -
कलम को बन्दूक बनने से रोको .