मानता हाथी बड़े हो
क्योंकि सत्ता में खड़े हो
आज ताकत है तुम्हारे हाथ में
मदमत्त हो तुम .
तंत्र के सब यन्त्र थामे हो
स्वयं ही शस्त्र हो तुम .
और हम हैं चींटियों जैसे
तुम्हारे सामने बस -
रौंद सकते हो निरंकुश
तंत्र का लेकर सहारा .
वक्त आने पर बताएँगे तुम्हें औकात अपनी
साक्षी इतिहास -
हर अन्याय का गिरता है पारा .
किन्तु कल जब -
समय का यह चक्र फिर उलटा चलेगा .
जब तुम्हारे प्रभव का सूरज
क्षितिज में जा ढलेगा .
और हाथों में विरोधी के -
समय का तंत्र होगा .
आज का यह तंत्र -
उसके तेज से अभिमन्त्र होगा.
गिड़गिड़ाओगे हमारे सामने
आकर दुबारा .
सोच लेना चींटियाँ भी कम नहीं होतीं
अगर समवेत हों तो .
हाथियों को निगल सकती हैं
स्वयं यदि एक हों तो .
और यदि उनमें से कोई
जान की बाजी लगाकर
मत्त गज की नासिका में घुस -
कहीं पर काट पाई
तो तुम्हारा स्वयं का
अस्तित्व ही जाता रहेगा .
इसलिए नीचे भी देखो -
क्योंकि कितना भी उड़ो तुम -
एक दिन तुमको भी निश्चित
भूमि पर आना पड़ेगा .
और जिनको -
हीनता की दृष्टि से तुम देखते हो
द्वार उनके -
याचना का पात्र ले जाना पड़ेगा .
7 comments:
एक्ता में बल है। और हर अत्याचार का प्रतिकार किया जाना चाहिए। अकेली ही सही।
sateek bat kahi hai aapne .ekta ke bal par har shoshan roopi hathi ko mara ja sakta hai .aabhar
shukl ji -i have given your blog link on my blog ''ye blog achchha laga '.my blog's URLis ''http://yeblogachchhalaga.blogspot.com .
aapki prastuti ne ek sher yad dila diya-
''aaj mana ki iqtdar me ho,
hukm rani ke tum khumar me ho,
ye bhi mumkin hai waqt le karvat,
paon upar hon ser tagar me ho.''
bahut achchha laga yahan aakar.aabhar.
जब वक्त खराब होता है तो हाथी क्या ऊंट पर बैठे को कुत्ता काट ले,
हर अत्याचार का प्रतिकार किया जाना चाहिए।
ek rachna par ek sath itne saare sunder comments. main aabhari hun aap sab ka, dhanyawad
S. N. Shukla
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