मैं सरस्वति पुत्र हूँ , करता नहीं व्यापार हूँ मैं ,
कल्पना का कवि नहीं हूँ, सत्य हूँ ,साकार हूँ मैं /
मूक की वाणी, दलित-शोषित ह्रदय की वेदना हूँ,
लोक प्रहरी हूँ, समूचे राष्ट्र की संवेदना हूँ /
एक ही उद्देश्य - जितना हो सके, वह सच कहूं मैं,
पथ विरत या सुप्त लोगों को, जगाता भी रहूँ मैं /
लेखनी का शस्त्र यह, परमाणु पूरित हाथ मेरे ,
न्याय का सहचर, सखा , अन्याय का प्रतिकार हूँ मैं/
कल्पना का कवि नहीं हूँ, सत्य हूँ ,साकार हूँ मैं //१//
सिरफिरा,सनकी,विवादी, शब्द भी स्वीकार मुझको,
लोग विद्रोही कहें, तो भी है अंगीकार मुझको /
अनवरत अन्याय, फिर भी चक्षु कैसे बंद कर लूं ,
मात्र अपने स्वार्थ हित, कैसे ह्रदय पाषाण धर लूं /
अग्नि जीवन ऊष्मा है, अग्नि तम को जारती है,
इसलिए बस घूमता , लेकर ह्रदय अंगार हूँ मैं /
कल्पना का कवि नहीं हूँ, सत्य हूँ ,साकार हूँ मैं//२//
रहबरी चोले में रहजन, चाल तिरछी चल रहा है ,
और सारे देश के, आक्रोश उर में पल रहा है /
कुर्सियां जिनके तले, वे पट्टियां आँखों पे बांधे,
फिर गरीबों, तंगहालों के, भला हित कौन साधे?
वे बधिर हैं , सिसकियाँ, उनको नहीं पड़तीं सुनायी,
इसलिए संधानता शर, धनुष की टंकार हूँ मैं /
कल्पना का कवि नहीं हूँ, सत्य हूँ ,साकार हूँ मैं//३//
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