धर्म,जीवन पद्धति है.
जिसके आदर्शों में-
दया है, करुणा है,
प्यार है, नैतिकता है,
सहयोग है, सदाचार है ,
अन्याय का प्रतिकार है.
और वे सब नियम-उपनियम भी -
जो मानवता के लिए आदर्श माने जाते हैं.
जो ऐसे धर्म को नशा मानते हैं,
उन्हें आप क्या मानते हैं?
और राजनीति के वे कथित पहरुए -
जो राजनीति में धर्म के विरोधी हैं ,
क्या परोक्ष वे-
अधर्म की राजनीति के पक्षधर नहीं हैं ?
मानस चौपाई की अर्धाली-
''राजनीति बिनु धन, बिनु धर्मा ''
अर्थात राजनीति में -
धन और धर्म दोनों आवश्यक हैं .
उन्हें धन याद है, धर्म नहीं
इसीलिए देश में-
अधर्म की राजनीति फल रही है
जहाँ केवल अधर्मियों की ही चल रही है
6 comments:
ek ek bat sach hai .sarthak abhivyakti .aabhar
धर्म और राजनीति की अजीब सी खिचड़ी पक रही है देश में।
यस यन शुक्ल जी अभिवादन -सच कहा आप ने धर्म की व्याख्या ही लोग गलत कर इस से कन्नी काटते हैं ..
राजनीती बिनु धन बिनु धर्मं रामायण ---धन को छोड़ अपना धर्म भी याद रखें सब ..
सुन्दर विषय -सार्थक लेख
शुक्ल भ्रमर ५
शिखा जी,
प्रवीण पाण्डेय जी,
सुरेन्द्र शुक्ल जी,
रचना को आपका स्नेह और समर्थन प्राप्त हुआ , बहुत - बहुत आभार , धन्यवाद
सच की चर्चा करती महत्वपूर्ण रचना...
धन्यवाद डॉक्टर शरद जी , आप ने सच का समर्थन किया , बहुत- बहुत आभार
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