वर्दीवाला ! शब्द आजकल दहशत का पर्याय हो गया ,
जिसकी लाठी, भैंस उसी की, यही वाक्य अब न्याय हो गया /
जो वर्दी एहसास सुरक्षा का देती थी, अब बिकती है ,
पदवालों, पैसेवालों के आगे नतमस्तक झुकती है,
हाय नौकरी, आह नौकरी, स्वाभिमान के दाम नौकरी,
रोजी -रोटी जो न कराये, नर कितना असहाय हो गया /
जो कल तक खाकी वर्दी से छिपते फिरते भय खाते थे,
और वही वर्दीवाले जिनकी तलाश में मंडराते थे ,
अब वे जनप्रतिनिधि, नेता हैं, काले धंधे चला रहे हैं,
वर्दी अब उनकी रक्षक है, शुरू नया अध्याय हो गया /
सीने पर पत्थर रखकर, वे लाठी-गोली दाग रहे हैं,
लेकिन बागी कहाँ थम रहे, लगा वारि में आग रहे हैं,
शायद पता नहीं है इनको, पानी कितना खौल चुका है,
विश्ववन्द्य यह देश आज लगता है कोई सराय हो गया /
वर्दी खाकी हो, काली हो या सफेद हो सब बिकती है ,
न्याय और अन्याय नहीं, बस नोटों की गड्डी दिखती है ,
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट तक झूठी मन माफिक बनती है ,
भरी अदालत झूठ बिक रहा, दुष्कर कितना न्याय हो गया /
एक नहीं हर ओर दुशासन-दुर्योधन से दुष्ट दरिन्दे,
देश द्रोपदी जैसा कातर, चीरहरण कर रहे लफंगे,
शकुनी मामाओं का जमघट, उलटी धार बहाते पानी ,
शातिर, शोरेपुश्तों के आगे, सब कुछ निरुपाय हो गया /
जिसकी लाठी, भैंस उसी की, यही वाक्य अब न्याय हो गया /
जो वर्दी एहसास सुरक्षा का देती थी, अब बिकती है ,
पदवालों, पैसेवालों के आगे नतमस्तक झुकती है,
हाय नौकरी, आह नौकरी, स्वाभिमान के दाम नौकरी,
रोजी -रोटी जो न कराये, नर कितना असहाय हो गया /
जो कल तक खाकी वर्दी से छिपते फिरते भय खाते थे,
और वही वर्दीवाले जिनकी तलाश में मंडराते थे ,
अब वे जनप्रतिनिधि, नेता हैं, काले धंधे चला रहे हैं,
वर्दी अब उनकी रक्षक है, शुरू नया अध्याय हो गया /
सीने पर पत्थर रखकर, वे लाठी-गोली दाग रहे हैं,
लेकिन बागी कहाँ थम रहे, लगा वारि में आग रहे हैं,
शायद पता नहीं है इनको, पानी कितना खौल चुका है,
विश्ववन्द्य यह देश आज लगता है कोई सराय हो गया /
वर्दी खाकी हो, काली हो या सफेद हो सब बिकती है ,
न्याय और अन्याय नहीं, बस नोटों की गड्डी दिखती है ,
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट तक झूठी मन माफिक बनती है ,
भरी अदालत झूठ बिक रहा, दुष्कर कितना न्याय हो गया /
एक नहीं हर ओर दुशासन-दुर्योधन से दुष्ट दरिन्दे,
देश द्रोपदी जैसा कातर, चीरहरण कर रहे लफंगे,
शकुनी मामाओं का जमघट, उलटी धार बहाते पानी ,
शातिर, शोरेपुश्तों के आगे, सब कुछ निरुपाय हो गया /
10 comments:
कटु सत्य लेकिन सटीक और सार्थक - बहुत सुंदर
बहुत बढ़िया गीत!
सुन्दर छंद का प्रयोग किया है आपने!
वाह शुक्ला जी ........
देश की वर्तमान दुर्दशा का यथार्थ चित्रण करती ...मन को उद्वेलित करने में समर्थ कविता
शब्द संयोजन ,छंदबद्धता और भाव से परिपूर्ण रचना ....
शुक्ला जी, वर्दी वाले कब सुरक्षा का अंदेशा देते थे? शायद सपनों में? मुझे तो एक आध अपवाद छोड़ कर हमेशा वर्दी वालों से डर ही लगा है.
सच्ची सशक्त अभिव्यक्ति.....
आजकल के हालात का इससे सही वर्णन नहीं हो सकता आभार
एक नहीं हर ओर दुशासन-दुर्योधन से दुष्ट दरिन्दे,
देश द्रोपदी जैसा कातर, चीरहरण कर रहे लफंगे,
शकुनी मामाओं का जमघट, उलटी धार बहाते पानी ,
शातिर, शोरेपुश्तों के आगे, सब कुछ निरुपाय हो गया /
आज की स्थिति को बखूबी लिखा है ...आभार
एक नहीं हर ओर दुशासन-दुर्योधन से दुष्ट दरिन्दे,
देश द्रोपदी जैसा कातर, चीरहरण कर रहे लफंगे,
यथार्थ के धरातल पर रची इस कविता का लय और आक्रोश दोनों बहुत पसंद आए।
ek dum satik rachna.
Aap sab tippanikartaon ka bahut- bahut aabhari hoon ,utsahvardhan ke liye dhanyawad .
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