ब्रह्मा की सृष्टि को चुनौती देने वाले विश्वामित्र ,
अत्याचारी शासक नन्द वंश के विनाश की शपथ लेकर -
चरवाहे बालक को यशस्वी सम्राट बनाने वाले चाणक्य ,
सिख गुरू नानक और गुरू गोविन्द सिंह ,
और आधुनिक युग में -
भारतीय स्वाधीनता संघर्ष की बेमिसाल , मशाल ,
ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेकने वाले -
मोहन दास करमचंद गांधी ,
इनमें से कौन नहीं था संत ?
देश- दुनिया में और भी हैं ऐसे अनंत /
ये सब युगातीत राजनैतिक इतिहास के महाग्रंथ हैं /
और सच्चे अर्थों में -
वे अपने समय के संतों से भी बड़े संत हैं /
कौन कहता है -
कि राजनीति संतों का काम नहीं है ?
व्यवस्था को गलत दिशा में भटकने से रोकना ,
संतों का वास्तविक काम यही है /
और सच यही है कि-
राजनीति में असंतों के वर्चस्व के कारण ही -
अन्याय, उत्पीड़न, भेदभाव और भ्रष्टाचार के मामले बढ़े हैं /
एक प्रश्न और -
क्या राजनीति असंतों (दुष्टों ) का काम है ?
जो लोग इस प्रश्न पर मौन हैं /
सोचिये, वे लोग कौन हैं ?
बिना व्याख्या के स्पष्ट है -
जो राजनीति में हैं , वे संत नहीं हैं /
वे मुंशी प्रेमचंद, निराला या पन्त नहीं हैं /
वे समाज की व्यथा से बहुत दूर हैं /
या यह कि-
वे ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में नासूर हैं /
वे नहीं चाहते -
उनके तिकड़म और हेराफेरी को कोई संत (सज्जन ) जाने /
उनकी मक्कारी और बेईमानी पर उँगली ताने /
इसीलिये वे संतों पर उँगलियाँ उठाते हैं /
क्योंकि एक आँख वालों को -
दोनों आँखों वाले कहाँ सुहाते हैं ?
21 comments:
दंद-फंद से भरी डगर यह।
आवेगपूर्ण वैचारिक रचना...
यथार्थ का दिग्दर्शन कराती सुन्दर रचना..
प्रवीण पाण्डेय जी ,
डॉक्टर शरद सिंह जी ,
सुरेन्द्र सिंह जी
आप शुभचिंतकों की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं का बहुत- बहुत आभार . आप मित्रों का स्नेह ही हमें सोच और शक्ति देता है /
vicharotejak rachana....
सच कहा है...
बहुत बढ़िया...
ब्लॉग भी फॉलो कर लिया है...
अपनत्व जी ,
वीणा जी
आप दोनों का बहुत- बहुत आभार , आपके स्नेह सुमनों के लिए हार्दिक धन्यवाद
अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी को सलाम!
बेहतरीन कविता ....अंतिम पंक्तियाँ बहुत प्रभावी बन पड़ी हैं...बधाई
बबली जी ,
डॉक्टर मोनिका शर्मा जी
आपकी सकारात्मक टिप्पणी और समर्थन का आभारी हूँ ,यह स्नेह बनाए रखें , धन्यवाद
विचारोत्तेजक कविता। आज तो यही हो रही है।
वे नहीं चाहते -
उनके तिकड़म और हेराफेरी को
कोई संत (सज्जन ) जाने /
उनकी मक्कारी और बेईमानी पर
उँगली ताने /इसीलिये वे संतों पर
उँगलियाँ उठाते हैं /
क्योंकि एक आँख वालों को -
दोनों आँखों वाले कहाँ सुहाते हैं ?
यथार्थ, बहुत बढ़िया...अद्भुत सुन्दर रचना!
ब्लॉग भी फॉलो कर लिया है...
मनोज जी,
जे . पी. तिवारी जी
ह्रदय से आभार आप दोनों मित्रों का, रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद
बहुत खूब लिखा है आपने !शानदार और सार्थक रचना!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
एक ही रचना पर आपकी दूसरी टिप्पणी , पुनः स्वागत आपका , आभार
veer ras se bhari rachna....
saath hi ek vichaar shrunkhla ka prarambh bindu.....
bahut bahut aabhar
बहुत सार्थक बात कही है आपने -शब्दों का चयन भी बखूबी किया है .बधाई
wah. bahut achchi.
ह्रदय को झंकृत करती रचना .
कनु जी,
शिखा जी,
मृदुला जी ,
अमृता जी
रचना पसंद आयी, इस स्नेह और समर्थन का ह्रदय से आभारी हूँ , धन्यवाद
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