बचपन ! गोद, पालने और खेल में
कैशोर्य ! पढ़ाई में
तरुणायी ! प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा की दौड़ में
परिपक्वता ! पत्नी और बच्चों की फरमाइशों में
प्रौढ़ावस्था ! संतानों का भविष्य संवारने में
और बुढ़ापा -
घर- परिवार को एकजुट रखने में ,
रिश्तों को निभाने में ,
अवशेष को संवारने में बीत जाता है /
आदमी -
अपने लिए कब जी पाता है ?
वह सारी जिन्दगी -
कोल्हू के बैल सा खटता है /
जिन्दगी के ताने , उलाहने और समय के थपेड़ों में -
लगातार टुकड़े- टुकड़े बटता है /
इस आपाधापी में -
वह जाने क्या - क्या सहता है /
फिर उसे अपना -
अपने खुद के कुछ होने का ध्यान कहाँ रहता है ?
जीवन संध्या में, जब वह -
जिन्दगी का हिसाब जोड़ता - घटाता है ,
तो अपने पीछे -
बस केवल रिक्ति ही रिक्ति पाता है /
यही मानव जीवन की सच्चाई है ,
जहाँ एक ओर कुआँ है -
और दूसरी ओर खाई है /
14 comments:
कटु सत्य उकेरती हुई रचना ...
बहुत सुंदर ...!!
जहाँ एक ओर कुआँ है -
और दूसरी ओर खाई है ||
बढ़िया प्रस्तुति ||
यही मानव जीवन की सच्चाई है
जहाँ एक ओर कुआँ है-
और दूसरी ओर खाई है | '
..............बहुत सही विश्लेषण ....मानव जीवन का
सही विश्लेषण किया है ...अच्छी प्रस्तुति
अनुपमा जी,
रविकर जी ,
सुरेन्द्र सिंह जी,
संगीता जी
आपके स्नेहमय उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार, धन्यवाद
sunder rcahna.man ko chu gayi.
अपने बारे में सोचने को बस कुछ ही पल मिल पाते हैं, यही जीवन का कटु सत्य है।
यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक प्रस्तुति !
manav ke poorn jeewan chakr ko bahut prabhavshali dhang se ukera hai. badhiya vishleshan.
बनावटी मुस्कुराहट चेहरे पर सजा कर "सब कुछ अच्छा चल रहा है" कहने वाले जानते हैं कि जीवन की साँझ में ऐसे झूठ का सहारा लेना कैसी बाध्यता है. यही जीवन की सच्चाई है .शायद किसी सच्चाई को छुपाने के लिये ही साँझ आसमान में रंग-बिरंगी छटा बिखेरती है.
एक-एक शब्द ने मन को छू लिया.
अब तस्वीर भी बहुत कुछ बोलने लगी है.
अमरेन्द्र अमर जी,
प्रवीण पाण्डेय जी,
डॉक्टर शरद जी ,
अनामिका जी ,
अरुण निगम
आप जैसे शुभचिंतकों की प्रतिक्रियाओं से प्रेरणा भी मिलती है और नए सर्जन की शक्ति भी / आप सभी मित्रों का बहुत- बहुत आभार .
गहन भाव से परिपूर्ण इस कविता में जीवन की सच्चाई का वर्णन किया गया है।
जीवन का सच
मनोज कुमार जी ,
संदीप पंवार जी
आपकी शुभकामनाएं हमारी प्रेरणा हैं , आभार, धन्यवाद
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