जब मचलती व्योम से , भू पर उतरती वारि धारा ,
मेह की बूदों के संग- संग नाचता तब मन हमारा .
पत्तियों को छू ,उतर कर टहनियों से , डालियों पर ,
द्रवित होकर बूँद ढलती, जब उतरती है धरा पर ,
फिर सहज बहती है पहले मंद, फिर गतिमान होकर ,
हुलसती अपनों से मिल वह, थिरकती निज मान खोकर ,
हर्ष ध्वनि करती हुई, नद धार से मिलती है धारा .
मेह की बूंदों के संग- संग नाचता तब मन हमारा .
वर्षा रानी का प्रकृति से मिलन या अभिसार भू पर ,
वह टपा- टप पाद स्वर , पाजेब की झनकार मनहर ,
दादुरों की तान के संग, कोकिला का राग सस्वर ,
वह छपा- छप थाप संग झींगुर बजाते वाद्य झांझर ,
और नभ में मेघदूतों का जभी बजता नगारा
मेह की बूंदों के संग-संग नाचता तब मन हमारा.
रंग धानी, अंग धानी, कुसुम कलि के झंग धानी,
और ज्यों सावन के रंग में, प्रकृति का हर रंग धानी,
उल्लसित, पुलकित ह्रदय थल, आर्द्र तन तो आर्द्रतम मन,
मात्र वातावरण में ही नहीं, उर में खिले सावन ,
झूलता सावन के झूले में लगे जब विश्व सारा,
मेह की बूंदों के संग-संग नाचता तब मन हमारा.
मेह की बूदों के संग- संग नाचता तब मन हमारा .
पत्तियों को छू ,उतर कर टहनियों से , डालियों पर ,
द्रवित होकर बूँद ढलती, जब उतरती है धरा पर ,
फिर सहज बहती है पहले मंद, फिर गतिमान होकर ,
हुलसती अपनों से मिल वह, थिरकती निज मान खोकर ,
हर्ष ध्वनि करती हुई, नद धार से मिलती है धारा .
मेह की बूंदों के संग- संग नाचता तब मन हमारा .
वर्षा रानी का प्रकृति से मिलन या अभिसार भू पर ,
वह टपा- टप पाद स्वर , पाजेब की झनकार मनहर ,
दादुरों की तान के संग, कोकिला का राग सस्वर ,
वह छपा- छप थाप संग झींगुर बजाते वाद्य झांझर ,
और नभ में मेघदूतों का जभी बजता नगारा
मेह की बूंदों के संग-संग नाचता तब मन हमारा.
रंग धानी, अंग धानी, कुसुम कलि के झंग धानी,
और ज्यों सावन के रंग में, प्रकृति का हर रंग धानी,
उल्लसित, पुलकित ह्रदय थल, आर्द्र तन तो आर्द्रतम मन,
मात्र वातावरण में ही नहीं, उर में खिले सावन ,
झूलता सावन के झूले में लगे जब विश्व सारा,
मेह की बूंदों के संग-संग नाचता तब मन हमारा.
25 comments:
ओर नभ में जब बजता नगारा
नाच उठता मन हमारा ..
बहुत ही सुन्दर मनको आल्हादित करती वर्षा ऋतू ..
उससे भी सुन्दर आपकी रचना ..शुभ कामनाएं !!!
spdimri.blogspot.com
शुक्ल जी बहुत ही सुंदर रचना है ..
झूम गया झूले के संग मन ...
सावन सबके लिए मंगलमय हो ..प्रभु कृपा करें ....
रंग धानी, अंग धानी, कुसुम कलि के झंग धानी,
और ज्यों सावन के रंग में,प्रकृति का हर रंगधानी,
उल्लसित,पुलकित ह्रदय थल,आर्द्र तन तो आर्द्रतम मन,
मात्र वातावरण में ही नहीं, उर में खिले सावन ,
झूलता सावन के झूले में लगे जब विश्व सारा,
मेह की बूंदों के संग-संग नाचता तब मन हमारा.
रिमझिम बारिश की तरह सुन्दर सावनी रचना....
हार्दिक बधाई...
बहुत ही सुन्दर रचना।
पत्तियों को छू ,उतर कर टहनियों से , डालियों पर ,
द्रवित होकर बूँद ढलती, जब उतरती है धरा पर ,
......बारिश की तरह सुन्दर सावनी रचना.
वाह इस वर्षा गीत को पढ़ कर मन भाव विभोर हो गया...शब्द और भाव दोनों अद्भुत हैं...बधाई स्वीकारें
नीरज
bahut hi sunder shabdon main rachit sunder sawan ke mousam perbemisaal prastuti.badhaai aapko.
please visit my blog.thanks.
प्रकृति व मन में यह उमंग छायी रहे।
ॠतु वर्णन लगा हमे न्यारा……एक नये अंदाज मे…सेनापति जी की पंक्ति को तो हम भूल नही पाते उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के दौरान पढ़े थे "अंबर अडंबर सौ उमड़ि घुमड़ि छिन छितके छतारे अति अधिक उछार के"……आपकी रचना भी कुछ कम नही…अलंकृत, लड़ी मे पिरोये हुये शब्द………।
रंग धानी, अंग धानी, कुसुम कलि के झंग धानी,
और ज्यों सावन के रंग में,
प्रकृति का हर रंग धानी,
अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई.
श्रीप्रकाश डिमरी जी ,
अनुपमा जी ,
संगीता जी ,
डॉक्टर शरद सिंह जी ,
वन्दना जी ,
संजय भास्कर जी ,
नीरज गोस्वामी जी ,
प्रेरणा जी ,
प्रवीण जी ,
सूर्यकांत गुप्ता जी
आप सब मेरे ब्लॉग पर आये ,अहो भाग्य / मैं आप
सब मित्रों का ह्रदय से आभारी हूँ / आप सब का उत्साहवर्धन ही मेरी प्रेरणा है , मुझे ऊर्जा प्रदान करता है / पुनश्च आभार, धन्यवाद
डॉक्टर वर्षा जी
मेरे ब्लॉग आपके प्रथम बार आगमन का स्वागत .रचना पसंद आयी , आभार, धन्यवाद
बहुत उम्दा रचना!
आदरणीय यस यन शुक्ल जी -बहुत ही रोचक प्रकृति के दृश्यों से लबरेज ए सावन की रचना मनमोहक - सारे प्यारे नज़ारे दिखा गयी --धन्यवाद
भ्रमर का दर्द और दर्पण में समर्थन के लिए आभार
आप बच्चों के लिए हमारे ब्लॉग -बाल झरोखा सत्यम की दुनिया में भी कृपया समर्थन दें
-शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का झरोखा -दर्द-ए -दिल
सारी पंक्तियाँ ही प्यारी
उल्लसित, पुलकित ह्रदय थल, आर्द्र तन तो आर्द्रतम मन,
मात्र वातावरण में ही नहीं, उर में खिले सावन ,
झूलता सावन के झूले में लगे जब विश्व सारा,
मेह की बूंदों के संग-संग नाचता तब मन हमारा.
शुक्ला जी नमस्ते बहुत ही सुंदर कविता बधाई |
वाह ! वाह !! ऐसी कवितायें हिंदी साहित्य का प्रतिनिधित्व करती हैं,हम गर्व से कह सकते हैं कि यह है समृद्ध हिंदी.
झूम गया झूले के संग मन ...
aapne sawan ki fuharon ki yaad dila di sir.
itne acche shabd man prasanna ho gaya.
aabhar
बहुत ही सुन्दर पक्तियां....बधाई.
डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री जी,
भ्रमर जी ,
जय कृष्ण तुषार जी ,
कनु जी ,
पुष्कर जी,
अरुण निगम जी
आप सबके स्नेहाशीष का बहुत- बहुत आभारी हूँ ,आपकी प्रतिक्रियाएं ही मेरा संबल हैं, मेरी मार्गदर्शक हैं , धन्यवाद
कितनी प्यारी लगी ये कविता मुझे कुछ निवेदन नहीं कर सकता ' झूले की तस्बीर ने पचास साल पहले की यादें दिलादीं _वर्षा का अति सुंदर वर्णन
बृजमोहन जी
आप जैसे कलमकार का आशीर्वाद रचना को मिलना मैं अपनी बड़ी उपलब्धि महसूस करता हूँ , बहुत- बहुत आभार , धन्यवाद
Shukl ji pahli baar apke blog ka pata chala.aana sarthak bhi raha..saavan ka ati sunder geet padhne ko mila.anusaran kar rahi hoon.saath hi apne blog par bhi aamantrit kar rahi hoon.itni pyari post ke liye aabhar.
shukla ji aap .is uttam lekhan ke liye badhayee sweekar karen....
राजेश कुमारी जी
मेरे शब्दों को आप द्वारा दी गयी सराहना के लिए बहुत- बहुत आभार .
कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा जी
आपकी बधाई स्वीकार , साथ ही समर्थक के रूप में ,मेरे सहयोगी के रूप में आपका हार्दिक स्वागत भी
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