जिंदगी गम ही नहीं, खुशनुमा एहसास भी है ,
ज़रा तलाश के देखो, वो आस-पास भी है.
ज़मीं की मुश्किलों में मुब्तिला क्योंकर रहना,
उड़ान भरने को सारा खुला आकाश भी है.
गम की गठरी को संजोने से दर्द होता है,
मगर उसी में कहीं पर छिपी मिठास भी है.
जिंदगी के ग़मों को ले के कहाँ तक रोयें,
अँधेरा है कभी तो फिर कभी उजास भी है.
ये नाचता है जहाँ , बस उसी की सरगम पे,
जिसमें है जूझने का जज्बा और आस भी है .
15 comments:
जिंदगी एक सफ़र है सुहाना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना।
bhaut hi sunder....
गम की गठरी को संजोने से दर्द होता है,
मगर उसी में कहीं पर छिपी मिठास भी है.
जिंदगी के ग़मों को ले के कहाँ तक रोयें,
अँधेरा है कभी तो फिर कभी उजास भी है.
बहुत खूबसूरत गज़ल
संदीप पंवार जी ,
सागर जी,
संगीता स्वरुप जी
आप मित्रों का स्नेह साभार स्वीकार , धन्यवाद
बहुत खूब...लाजवाब ग़ज़ल...
इसी आस में जी लेते हैं,
पीड़ा का जल पी लेते हैं।
"जिंदगी के ग़मों को लेकर कहां तक रोएँ
अन्धेरा है कभी तो कभी उजास भी है "बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ |
बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई
आशा
डॉक्टर शरद जी ,
प्रवीण पाण्डेय जी,
आशा जी
आप शुभचिंतकों का स्नेहाशीष मिला और प्रशंसा भी ,बहुत- बहुत आभार, धन्यवाद
एस.एन शुक्ल जी,माफ़ी चाहती हूँ ब्लॉग पर
बहुत देर से पहुँच रही हूँ वो भी पहली बार.किन्ही कारणों वश नेट से दूर थी पर अब नियमित हो जाउंगी.
आपकी गज़ल को दिल के बहुत करीब पाया अच्छा लगा.खूबसूरत और सार्थक पोस्ट
आभार
सच है कि सामने खुला आकाश है बस हौसला और जज़्बा होना चाहिए।
Rachana ji,
Manoj ji
आप शुभचिंतकों का स्नेहाशीष मिला और प्रशंसा भी ,बहुत- बहुत आभार
जिंदगी के ग़मों को ले के कहाँ तक रोयें,
अँधेरा है कभी तो फिर कभी उजास भी है....
atisundara bhawpurn rachanaa...
aabhar...
सुरेश कुमार जी
आप मेरे ब्लॉग पर आये, मेरे शब्दों को समर्थन दिया , बहुत- बहुत आभार , धन्यवाद
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति जो मन को भिगो जाती है..आभार
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