अँधेरे चारों तरफ फिर वही, जो पहले थे,
एक गर रात , रोशनी में नहाई तो क्या ?
जश्न की रात, रात भर हुई आतिशबाजी ,
दिवाली एक रोज के लिए , आई तो क्या ?
उनसे पूछो , कि जिनके घर नहीं जले चूल्हे ,
शब किन्हीं की रही , प्यालों में समाई तो क्या ?
नकारखाने में , तूती के मायने क्या हैं ,
कहीं आवाज भी, पड़ी जो सुनाई तो क्या ?
साल में एक नहीं, तीन सौ पैंसठ दिन हैं ,
बलात एक दिन , रौनक कहीं आई तो क्या ?
रोशनी वो जो , हर बशर पे एक सा बरसे,
अधूरी रोशनी , फिर आई न आई तो क्या ?
- एस. एन.शुक्ल
32 comments:
उनसे पूछो , कि जिनके घर नहीं जले चूल्हे ,
शब किन्हीं की रही , प्यालों में समाई तो क्या ?
बहुत सुन्दर रचना ... संवेदनशील मन से निकले उद्दगार
वाह्………सच को उदघाटित करती सुन्दर रचना।
बहुत सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति...
बेहतरीन कविता सर....विचारनीय!!!
बहुत गहरे प्रश्न उठाती कविता... जश्न के जोश में हमें अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटना चाहिए.
bahut umdaa bahut sundar prastuti.
ati sundar chitran .badhaayee
ati sundar chitran .badhaayee
सटीक प्रश्नों को स्वर दिया है!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
दीवाली की रौशनी हर जगह नहीं होती....कई घर भी ऐसे होते हैं जिन्हें चूल्हे की आँच की रौशनी भी नसीब नहीं होती. ..दीवाली के त्यौहार के दिन व्यंजनों की जगह सूखी रोटी तक नही मिलती....बहुत उम्दा व् मर्मस्पर्शीय रचना....साधुवाद..
अत्यधिक संवेदनशील रचना | अत्युत्तम !
अत्यधिक संवेदनशील रचना | अत्युत्तम !
अत्यधिक संवेदनशील रचना | अत्युत्तम !
अत्यधिक संवेदनशील रचना | अत्युत्तम !
सिक्के के दूसरे पहलू को दर्शाती अच्छी ग़ज़ल।
हर शेर कुछ सच्चाई बयान करता हुवा ... ;लाजवाब ...
Sangita ji,
चर्चा मंच में मेरी रचना को स्थान देकर आपने मुझे जो मान दिया है,उसके लिए ह्रदय से आभारी हूँ.
आपका स्नेह मिला , आभार
Vandana ji,
Maheshwari Kaneri ji,
Vidya ji,
मेरे शब्दों को आपका समर्थन मिला , बहुत- बहुत आभारी हूँ.
Sanjay Bhasker ji,
Anita ji,
Rajesh kumari ji,
आपका स्नेह और समर्थन पाकर कृतार्थ हुआ , धन्यवाद.
Virendra ji,
आपका स्नेह मिला , आभार
Pravin pandey ji,
Roli Pathak ji,
Abhivyanjana ji,
आपका स्नेह और समर्थन पाकर कृतार्थ हुआ , धन्यवाद.
Mahendra verma ji,
Digamber Naswa ji,
आप मित्रों से सदैव इसी स्नेह की अपेक्षा है, आभार .
शुक्ला जी नमस्कार, सच कहा आपने ---रोशनी वो है जो एक तरह वरसे-----------------मेरे ब्लाग पर भी आपका स्वागत है।
very nice poem. gurgaon ke fly-over ke kinare jab main garib bacchon ko bhaag kar har ek gaadi ke paas jaate dekh rahi thi jab diwali ki raat ko to aisa hi kuch mahsoos kiya tha maine.
very nice poem. gurgaon ke fly-over ke kinare jab main garib bacchon ko bhaag kar har ek gaadi ke paas jaate dekh rahi thi jab diwali ki raat ko to aisa hi kuch mahsoos kiya tha maine.
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेर नए पोस्ट ' अपनी पीढी को शब्द देना मामूली बात नही" है पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
Suman Dubey ji,
Anju MISRA ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और मेरे शब्दों को सराहना देने का बहुत- बहुत आभार.
Prem sarover ji
आभारी हूँ आपका.
बहुत सुन्दर एवं सटीक लिखा है आपने! मार्मिक प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
गूढ़ अर्थ लिए छठ की बधाई
Babali ji,
Babban pandey ji,
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रियाओं का आभार , धन्यवाद .
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