एक दिन गाँव , नगरों को ललचायेंगे !
स्वर्ग धरती के, फिर वे कहे जायेंगे /
पाल्या फिर कही जायेगी यह धरा ,
और नदियाँ , कही जायेंगी फिर वरा,
पूजे जायेंगे तरु, गुल्म, पादप, लता ,
उर्वरा अपनी उगलेगी , सोना हरा ,
जब प्रकृति की यहीं शेष होगी कृपा ,
शहर, गावों की उस दिन , शरण आयेंगे /
एक दिन गाँव , नगरों को ललचायेंगे !पत्थरों के नगर, जब उबायेंगे , तब ,
चैन खोजेंगे सब , नीम की छाँव में,
गाँव में ही बहेगी प्रकृति की पवन,
चहचहायेंगे पक्षी भी , बस गाँव में ,
लोग, पिकनिक के ही तब बहाने सही,
गाँव में, शान्ति की खोज में आयेंगे /
एक दिन गाँव , नगरों को ललचायेंगे !आम्र की मंजरी की, मधुर गंध जब,
मिल वसंती बहारों को महकाएगी ,
बौर, पल्लव, लता ओट ले कोकिला ,
मधुमयी तान में , गीत जब गायेगी ,
तितलियाँ सप्त रंगों की इठलायेंगी ,
जब भ्रमर, पुष्प गुच्छों पे मंडराएंगे /
एक दिन गाँव , नगरों को ललचायेंगे !गाय- भैसें , यहीं शेष रह जायेंगी ,
दूध की आश्रिता होगी जब गाँव पर ,
अन्न, फल, सब्जियाँ, गाँव उपजायेंगे ,
लहलहायेंगी फसलें, इसी ठाँव पर ,
आंका जाएगा , सच मूल्य तब गाँव का ,
ग्रामवासी , कहे देवता जायेंगे /
एक दिन गाँव , नगरों को ललचायेंगे !
23 comments:
काश गाँव नगरों की नकल करना बन्द कर दें।
काश गाँव नगरों की नकल करना बन्द कर दें।
गाँव धीरे धीरे शहर में समाते जा रहे हैं...फिर भी किसी न किसी रूप में शहर का अस्तित्त्व गाँव पर टिका है... आपका सपना शीघ्र पूरा हो !
बहुत सार्थक रचना...जो भौतिकता की अंधी दौड में शामिल नहीं हैं उन्हें गाँव आज भी खीचता है...
ek din gaon, shahron ko lalchayenge. ati sundar..aisi ummid mujhe bhi hai,,
aap mere blog me aaye hardhik abhinandan....
आदरणीय श्रीशुक्लासाहब,
बहुत बढ़िया रचना..!!
बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें ।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
मान्यवर
आज आपका ब्लॉग पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ! आज आपकी पहली ही रचना ने, दिल के तार झंकृत कर दिए! आपकी रचना अनमोल है! हम जो गाँव के जीवन को दुत्कार रहे हैं और शहरीकरण की और भाग रहे हैं, वो जीवन का अर्थ नहीं है! अर्थ तो वहां हैं जहाँ शांति है, हया है, अपनापन है और मानवीय प्रेम है! और वो सिर्फ गाँव में ही है!
मान्यवर
आज आपका ब्लॉग पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ! आज आपकी पहली ही रचना ने, दिल के तार झंकृत कर दिए! आपकी रचना अनमोल है! हम जो गाँव के जीवन को दुत्कार रहे हैं और शहरीकरण की और भाग रहे हैं, वो जीवन का अर्थ नहीं है! अर्थ तो वहां हैं जहाँ शांति है, हया है, अपनापन है और मानवीय प्रेम है! और वो सिर्फ गाँव में ही है!
मान्यवर
आपकी सभी रचनाओ को मैं अवश्य पढूंगा, क्यूंकि मुझे भी आपकी ही तरह से शब्दों से प्रेम है! धन्यवाद जो आपने अपना सामीप्य दिया!
बहुत सार्थक रचना| धन्यवाद|
गाँव की बात निराली है शहर के लोग क्या समझेगे गाँव की सादगी को,सुंदर पोस्ट बधाई
दीपावली की शुभकामनाये...
मेरी दूसरा ब्लॉग dheerendra11 देखे..
पत्थरों के नगर, जब उबायेंगे , तब ,चैन खोजेंगे सब , नीम की छाँव में,गाँव में ही बहेगी प्रकृति की पवन,चहचहायेंगे पक्षी भी , बस गाँव में ,लोग, पिकनिक के ही तब बहाने सही,गाँव में, शान्ति की खोज में आयेंगे /एक दिन गाँव , नगरों को ललचायेंगे !
बहुत खुबसूरत..........ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी....
Pravin pandey ji,
Anita ji,
Vidya ji,
आप मित्रों से इसी स्नेह की हमेशा अपेक्षा है.
Roopchandra Shastri ji,
रचना को आपकी अनुशंसा मिली,आभारी हूँ,धन्यवाद.
Asha Bisht ji,
Makarand DAVE JI,
Chetan ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और समर्थन का बहुत- बहुत आभार.
Dhirendra ji,
Amarendra ji,
patali the village
रचना को आपकी अनुशंसा मिली,आभारी हूँ,धन्यवाद.
पाल्या फिर कही जायेगी यह धरा ,और नदियाँ , कही जायेंगी फिर वरा,पूजे जायेंगे तरु, गुल्म, पादप, लता ,उर्वरा अपनी उगलेगी , सोना हरा ,जब प्रकृति की यहीं शेष होगी कृपा ,शहर, गावों की उस दिन , शरण आयेंगे
सुंदर ख्याल .....!!
सच शहर एक दिन गाँव देख कर ललचाएगा|
और इस अंधानुकरण विकास में मुंह कि खायेगा|
बहुत हि अच्छी रचना|
बहुत कुछ सीखने को मिलेगा आपसे ............
बहुत कुछ सीखने को मिलेगा आपसे ............
इस सुंदर गीत में व्यक्त की गई कामना फलीभूत हो।
बहुत बढि़या रचना।
Harkeerat heer ji,
Chandan ji,
आपके स्नेह और शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Nityanand ji,
Mahendra verma ji,
आप मित्रों का स्नेह मिला, बहुत- बहुत आभार .
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