चित्र धूमिल ही सही सौहार्द के, मिटने न पायें /
जो मशालें ले तमस से लड़ रहे , उनको सराहो ,
और जो उनकी हिमायत में खड़े, उनको सराहो ,
दर्द जो औरों का खुद में पालते , वे कम बहुत हैं,
शक्ति दो उनको समर्थन की, रहें जलतीं शमाएँ /
रोशनी के चंद दीपक ही सही , बुझने न पायें /
मानता हूँ ! शक्तिशाली हैं , उजालों के लुटेरे ,
मानता, सच को ढके हैं , झूठ के बादल घनेरे ,
फिर उठाओ आंधियाँ, इन बादलों को ठोकरें दो ,
सत, असत पर, न्याय को अन्याय पर विजयी बनाएं /
रोशनी के चंद दीपक ही सही , बुझने न पायें /
देश के स्वाधीन होते हुए भी , ग़मगीन हो तुम ,
सोचिये ! मतदान के अतिरिक्त कितना दीन हो तुम ,
लोक के इस तंत्र पर , काबिज़ लुटेरे हो चुके हैं ,
मुक्ति का उसकी करें सदुपाय , आओ मन बनाएं /
रोशनी के चंद दीपक ही सही , बुझने न पायें /
इस प्रजा के तंत्र में , तुम स्वयं अधिपति हो स्वयं के ,
इसलिए ! अन्याय को ललकार दो प्रतिकार बन के ,
जो तुम्हारे ही दिए टुकड़ों पे पल , गुर्रा रहे हैं ,
दो उन्हें दुत्कार , उनके हौसले बढ़ने न पायें /
रोशनी के चंद दीपक ही सही , बुझने न पायें /
13 comments:
param aadarneey ,pranaam
ateev sundar , geet kyaa prernaa kaa kosh hai nirdosh prastuti,
sochiye matdaan ke atirikt kitnaa deen ho tum .
bahut-bahut badhaayee
चित्र धूमिल ही सही सौहार्द के, मिटने न पायें
बढ़िया अंदाज ||
बहुत बहुत बधाई ||
neemnimbouri.blogspot.com
सार्थक सोच लिये बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
jabardast joshpoorn sashakt rachna.
http://anamka.blogspot.com/2011/09/blog-post_30.html
is link par bhi aane ki kripa karen.
aabhar.
सार्थक आह्वान है ... आज मिल के एक साथ खड़े होने का समय है दुबारा से ... ओज़स्वी रचना है ..
टिमटिमाते ही रहेंगे,
गीत गाते ही रहेंगे।
प्रिय और आदरणीय शुक्ल जी बहुत सुन्दर ...सराहनीय सन्देश ...काश लोग जाग जाते .... नवरात्री और विजय दशमी की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
मानता हूँ ! शक्तिशाली हैं , उजालों के लुटेरे ,मानता, सच को ढके हैं , झूठ के बादल घनेरे ,फिर उठाओ आंधियाँ, इन बादलों को ठोकरें दो ,सत, असत पर, न्याय को अन्याय पर विजयी बनाएं /रोशनी के चंद दीपक ही सही , बुझने न पायें /
NICE.
--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
--
MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.
इस प्रजा के तंत्र में, तुम स्वयं अधिपति हो स्वयं के
इसलिए! अन्याय को ललकार दो प्रतिकार बन के ,
जो तुम्हारे ही दिए टुकड़ों पे पल, गुर्रा रहे हैं,
दो उन्हें दुत्कार, उनके हौसले बढ़ने न पायें
रोशनी के चंद दीपक ही सही, बुझने न पायें.
सुंदर आमंत्रण आज ऐसे ही आह्वाहन की आवश्यकता है. खुबसूरत प्रस्तुति.
विजय दशमी की शुभकामनायें.
wah bahut khoob.....
Priy Virendra,
Ravikar ji,
Kailash C. Sharma ji
आपका स्नेह , समर्थन मिला, आभारी हूँ.
ANAMIKA JI,
DIGAMBER NASWA JI,
PRAVIN PANDEY JI
आपकी प्रतिक्रियाएं मेरा उत्साहवर्धन ही नहीं, मार्गदर्शन भी करती हैं , आभार .
Surendra ShuklaJI,
rOOP CHANDRA SHASTRI JI,
Rachna Dixit ji,
Reva ji
रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद.
आपकी प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन करती हैं , आभार .
Post a Comment