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Saturday, September 22, 2012

(168) नदी सागर से मिले है

उम्मीद की  दरिया में  कवँल  कैसे  खिले  है ,
लम्हों की खता की सज़ा , सदियों को मिले है।

मज़बूर बशर की कोई सुनता नहीं सदा ,
वह बेगुनाह होके भी , होठों को सिले है।

इनसान की फितरत में ही , इन्साफ कहाँ है,
जर, जोर, ज़बर हैं जहां , सब माफ़ वहाँ  है।

हर दौर गरीबों पे सितम , मस्त सितमगर ,
कब  मंद  हवा से  कोई ,  कोहसार  हिले है ?

कुदरत का भी उसूल ये, कमजोर झुके है ,
सागर नहीं मिलते , नदी सागर से मिले है।

                        - एस .एन . शुक्ल 

33 comments:

Anupama Tripathi said...

ek soch de rahii hai rachna ...!!
sarthak ..
shubhkamnayen ..

अशोक सलूजा said...

सच को उजागर करते एहसास ....
शुभकामनायें!

मन्टू कुमार said...

लाजवाब रचना |

"तेरे बिना वो दोस्त..!"
आभार |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

हर दौर गरीबों पे सितम ,मस्त सितमगर ,
कब मंद हवा से कोई ,कोहसार हिले है ?

लाजबाब प्रस्तुति,,,शुक्ल जी,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का

प्रवीण पाण्डेय said...

गहन संदेश देती पंक्तियाँ..

Ramakant Singh said...

मज़बूर बशर की कोई सुनता नहीं सदा ,
वह बेगुनाह होके भी , होठों को सिले है।

BEAUTIFUL LINES VERY NEAR TO MY HEART

Aditi Poonam said...

झुकना कमज़ोर को ही है ,यही तो दुनिया का चलन है इतनी
बढ़िया रचना के लिए बधाई



कालीपद "प्रसाद" said...

कमजोर ही हमेशा झुकते है ,ताकतवर नहीं. बिलकुल सही कहा आपने.- बहुत अच्छा

कालीपद "प्रसाद" said...

कमजोर ही हमेशा झुकते है ,ताकतवर नहीं. बिलकुल सही कहा आपने.- बहुत अच्छा

S.N SHUKLA said...

A NUPAMA JI,
आपकी स्नेहमयी शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

aSHOK sALOOJA JI,
MANTOO KUMAR JI,

स्नेह और समर्थन मिला, आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

dHEERENDRA JI,
PRAVIN PANDEY JI,
ROOPCHAND SHASTRI JI,

इस उदारमना स्नेह का बहुत- बहुत आभार.

S.N SHUKLA said...

Ramakant singh ji,
Aditipoonam ji,
K. Prasad ji,

धन्यवाद इस उदारता के लिए.

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

सागर नहीं मिलते ,नदी सागर से मिले है |----क्या खूब कहा सर ,बहुत ही खरी बात कही आपने | संक्षेप में समाज का दर्शन कह दिया |

Prakash Jain said...

bahut khoob:-)

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

नदी तो सागर से मिलती ही है...सागर भी नदी बिन अधूरा है...
अच्छी रचना !
~सादर !!!

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

नदी तो सागर से मिलती ही है...सागर भी नदी बिन अधूरा है...
अच्छी रचना !
~सादर !!!

Asha Lata Saxena said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्तीं |
आशा

Asha Lata Saxena said...

बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति
आशा

संजय भास्‍कर said...

बढ़िया रचना के लिए बधाई
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

ZEAL said...

yes, survival of the fittest...

Shekhar Suman said...

bahut khoob..

वृजेश सिंह said...

नदी का सागर से मिलना प्रकृति का नियम है। लेकिन सागर की मौजूदगी से नदी के अस्तित्व को तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक कि नदी खुद सागर से मिलने न आ जाए। नदी और सागर व्यक्ति और समष्टि के सूचक हैं।

सागर को नदी को शोषक मान लेने की उपमा दी जा सकती है। लेकिन सफर और मंजिल की उपमा में नदी और सागर ज्यादा सटीक या मुफीद बैठते हैं। बेहतरीन कविता का स्वागत और शुक्रिया।

S.N SHUKLA said...

Anand Tripathi ji,

शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Prakash jain ji,
धन्यवाद आपके स्नेह और समर्थन का.

S.N SHUKLA said...

Anita ji,
Onkar ji,
Asha Saxena ji,

आप मित्रों से इसी स्नेह की अपेक्षा थी.

S.N SHUKLA said...

Sanjay Bhasker ji,
ZEAL JI,
बहुत- बहुत आभार
शुभकामनाओं का .

S.N SHUKLA said...

Shekhar Suman ji,

आपके समर्थन का बहुत- बहुत आभार.

S.N SHUKLA said...

Brijesh Singh ji,
आपके स्नेह और समर्थन का बहुत- बहुत आभार.

मेरा मन पंछी सा said...

कमजोर ही सदा झुकता है...
सत्यता बताती रचना...
:-)

S.N SHUKLA said...

aabhaar aapake blog par aagaman aur shubhakaamanaaon kaa .

priya said...

har line kitna kuch kehti hai, behad pasand aayi, baar baar padhi jaa sakti hain yeh to....

S.N SHUKLA said...

Tripti ji,
aapake sneh kaa aabhaaree hoon.