उम्मीद की दरिया में कवँल कैसे खिले है ,
लम्हों की खता की सज़ा , सदियों को मिले है।
मज़बूर बशर की कोई सुनता नहीं सदा ,
वह बेगुनाह होके भी , होठों को सिले है।
इनसान की फितरत में ही , इन्साफ कहाँ है,
जर, जोर, ज़बर हैं जहां , सब माफ़ वहाँ है।
हर दौर गरीबों पे सितम , मस्त सितमगर ,
कब मंद हवा से कोई , कोहसार हिले है ?
कुदरत का भी उसूल ये, कमजोर झुके है ,
सागर नहीं मिलते , नदी सागर से मिले है।
- एस .एन . शुक्ल
लम्हों की खता की सज़ा , सदियों को मिले है।
मज़बूर बशर की कोई सुनता नहीं सदा ,
वह बेगुनाह होके भी , होठों को सिले है।
इनसान की फितरत में ही , इन्साफ कहाँ है,
जर, जोर, ज़बर हैं जहां , सब माफ़ वहाँ है।
हर दौर गरीबों पे सितम , मस्त सितमगर ,
कब मंद हवा से कोई , कोहसार हिले है ?
कुदरत का भी उसूल ये, कमजोर झुके है ,
सागर नहीं मिलते , नदी सागर से मिले है।
- एस .एन . शुक्ल
33 comments:
ek soch de rahii hai rachna ...!!
sarthak ..
shubhkamnayen ..
सच को उजागर करते एहसास ....
शुभकामनायें!
लाजवाब रचना |
"तेरे बिना वो दोस्त..!"
आभार |
हर दौर गरीबों पे सितम ,मस्त सितमगर ,
कब मंद हवा से कोई ,कोहसार हिले है ?
लाजबाब प्रस्तुति,,,शुक्ल जी,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
गहन संदेश देती पंक्तियाँ..
मज़बूर बशर की कोई सुनता नहीं सदा ,
वह बेगुनाह होके भी , होठों को सिले है।
BEAUTIFUL LINES VERY NEAR TO MY HEART
झुकना कमज़ोर को ही है ,यही तो दुनिया का चलन है इतनी
बढ़िया रचना के लिए बधाई
कमजोर ही हमेशा झुकते है ,ताकतवर नहीं. बिलकुल सही कहा आपने.- बहुत अच्छा
कमजोर ही हमेशा झुकते है ,ताकतवर नहीं. बिलकुल सही कहा आपने.- बहुत अच्छा
A NUPAMA JI,
आपकी स्नेहमयी शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
aSHOK sALOOJA JI,
MANTOO KUMAR JI,
स्नेह और समर्थन मिला, आभारी हूँ.
dHEERENDRA JI,
PRAVIN PANDEY JI,
ROOPCHAND SHASTRI JI,
इस उदारमना स्नेह का बहुत- बहुत आभार.
Ramakant singh ji,
Aditipoonam ji,
K. Prasad ji,
धन्यवाद इस उदारता के लिए.
सागर नहीं मिलते ,नदी सागर से मिले है |----क्या खूब कहा सर ,बहुत ही खरी बात कही आपने | संक्षेप में समाज का दर्शन कह दिया |
bahut khoob:-)
नदी तो सागर से मिलती ही है...सागर भी नदी बिन अधूरा है...
अच्छी रचना !
~सादर !!!
नदी तो सागर से मिलती ही है...सागर भी नदी बिन अधूरा है...
अच्छी रचना !
~सादर !!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तीं |
आशा
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति
आशा
बढ़िया रचना के लिए बधाई
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
yes, survival of the fittest...
bahut khoob..
नदी का सागर से मिलना प्रकृति का नियम है। लेकिन सागर की मौजूदगी से नदी के अस्तित्व को तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक कि नदी खुद सागर से मिलने न आ जाए। नदी और सागर व्यक्ति और समष्टि के सूचक हैं।
सागर को नदी को शोषक मान लेने की उपमा दी जा सकती है। लेकिन सफर और मंजिल की उपमा में नदी और सागर ज्यादा सटीक या मुफीद बैठते हैं। बेहतरीन कविता का स्वागत और शुक्रिया।
Anand Tripathi ji,
शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Prakash jain ji,
धन्यवाद आपके स्नेह और समर्थन का.
Anita ji,
Onkar ji,
Asha Saxena ji,
आप मित्रों से इसी स्नेह की अपेक्षा थी.
Sanjay Bhasker ji,
ZEAL JI,
बहुत- बहुत आभार
शुभकामनाओं का .
Shekhar Suman ji,
आपके समर्थन का बहुत- बहुत आभार.
Brijesh Singh ji,
आपके स्नेह और समर्थन का बहुत- बहुत आभार.
कमजोर ही सदा झुकता है...
सत्यता बताती रचना...
:-)
aabhaar aapake blog par aagaman aur shubhakaamanaaon kaa .
har line kitna kuch kehti hai, behad pasand aayi, baar baar padhi jaa sakti hain yeh to....
Tripti ji,
aapake sneh kaa aabhaaree hoon.
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