कहीं हो आग , जलायेगी उसकी फितरत है,
कभी किसी का जले घर, मकान अपना है /
जो मरा हिन्दू, मुसलमाँ , ईसाई , सिख वो नहीं,
ज़रा सा गौर से देखो , वो कोई अपना है /
मुल्क को बाँट सियासत में, कौम-ओ- फिरकों में ,
किसी सुकून की ख्वाहिश , ये महज सपना है /
नफरतें बोना- उगाना , ये बात ठीक नहीं ,
ओ नेकबख्त , ये सारा ज़हान अपना है /
अपनी हरकत से झुके सिर न सरज़मीं का कहीं ,
ये देश अपना है , शान - ओ - गुमान अपना है /
वो लूट कैसी , कहीं भी , किसी के साथ सही ,
जो लुट रहा है , वो हिन्दोस्तान अपना है /
- एस. एन. शुक्ल
कभी किसी का जले घर, मकान अपना है /
जो मरा हिन्दू, मुसलमाँ , ईसाई , सिख वो नहीं,
ज़रा सा गौर से देखो , वो कोई अपना है /
मुल्क को बाँट सियासत में, कौम-ओ- फिरकों में ,
किसी सुकून की ख्वाहिश , ये महज सपना है /
नफरतें बोना- उगाना , ये बात ठीक नहीं ,
ओ नेकबख्त , ये सारा ज़हान अपना है /
अपनी हरकत से झुके सिर न सरज़मीं का कहीं ,
ये देश अपना है , शान - ओ - गुमान अपना है /
वो लूट कैसी , कहीं भी , किसी के साथ सही ,
जो लुट रहा है , वो हिन्दोस्तान अपना है /
- एस. एन. शुक्ल
32 comments:
वाह.....बहुत सुंदर,बेहतरीन प्रस्तुति..
आपका समर्थक पहले से हूँ,.आप भी बने ताकि पोस्ट पर पहुचने में सुगमता रहेगी,...और मुझे
खुशी होगी,...
MY RESENT POST...काव्यान्जलि.....तुम्हारा चेहरा.
बहुत बढ़िया सर....
अपनेपन की भावना आ गयी तो बात ही क्या है..
सादर.
अनु
bahut hi khubsurat prastuti |
aabhaar subah subah ek mast rachna padhvaane ke liye ||
बहुत बढिया !
मेरा नया पोस्ट
प्रेम और भक्ति में हिसाब !
bahut hi khoobsoorat kavita . dhanyawaad .
सच कहा ... सारा जहां अपना है ... पर कुछ लोग इस बात को नहीं समझते ... नफरत के बीज बोते हैं ... अच्छी रचना है ...
सियासत की आंच पे रोटियां सेंकने वाले दोगले चेहरों को बेनकाब कराती एक यथार्थपरक अभिव्यक्ति..... बहुत खूब शुक्ल जी .
बहुत सुंदर......
....ये सारा जहां अपना है .....
"वासुदेव कुटुम्बकम" की भावना से ओतप्रोत एक सार्थक व बेहतरीन प्रस्तुति. आभार !!
सच कहा आपने, क्रोध किसी पर हो, हानि अपनी होती है।
Dheerendra ji,
Anu ji,
Ravikar ji,
आभारी हूँ आपके स्नेह का.
Ayodhya prasad ji,
Meeta ji,
आपका समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना.
Shalini ji,
Karuna ji,
Subir Rawat ji,
यह स्नेह सदैव मिलता रहे, यही आकांक्षा है.
Pravin pandey ji,
इस स्नेह का आभारी हूँ.
कुछ लोग इस बात को नहीं समझने वाले ...बहुत बढ़िया पोस्ट .
ये जहां अपना है. उपर वाले ने हमें जहां दिया हमने उसे काटकर हिन्दोस्ताँ बना दिया. अब तो ये हिन्दोस्ताँ भी बँट रहा है. शुक्ल जी यह पीड़ा असहनीय है.
बहुत बढ़िया
शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
"अपनी हरकत से झुके न सर सरज़मीं का,
ये देश अपना है, शान ओ गुमान अपना है!!"
वाह..बहुत सुंदर रचना शुक्ल जी !!
मरे कोई भी, होगा तो इंसान ही
बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने
मरे कोई भी, होगा तो इंसान ही
बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने
देश कीकी शान में पेश की गई सुन्दर रचना!....आभार!
आपका ब्लॉग खुलता नहीं था ....बड़े दिनों बाद खुला है ....कोई एरर आता था ...आशा है अब खुलता रहेगा और हम नियमित आपकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ पाएंगे ...!
बहुत गहन अर्थ लिए ...शानदार रचना है ...!!
बहुत सुंदर भाव ...!
आभार.
बहुत सुंदर..
शुक्ल जी नमस्ते !
"कुछ मजहबों में बंट गए कुछ सरहदों में बंट गए।
उसका तो नहीं फिर सोचो यह किसका काम था।।
खोजने निकला तो कोई हिन्दू मिला, कोई मुसलमान।
न जाने कहां खो गया वो शख्स इंसान जिसका नाम था।।"
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ....
अपनी हरकत से झुके सिर न सरज़मीं का कहीं ,
ये देश अपना है , शान - ओ - गुमान अपना है
इस सोच को मेरा नमन और आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.
आपको चैत नवरात्र और नवसंवत की भी सादर बधाईयाँ.
BRAJENDRA SINGH JI,
Deepak Saini ji,
आपके स्नेहिल समर्थन का आभार.
Anupama ji,
Amrita ji,
आपका स्नेह मिला, आभारी हूँ.
Pradeep ji,
Rachana Dixit ji,
आभारी हूँ आप शुभचिंतकों के स्नेह का.
वाह...वाह...वाह...शब्द-शब्द में देशभक्ति...
आन्दोलित करती रचना...
सराहनीय रचना की प्रस्तुति के लिये बधाई...
Dinesh Agrawal ji,
आभारी हूँ आपके उत्साहवर्धन का.
bahut behtareen sanvedansheel rachna hai aur is par lagai tasveer se is kavita ka arth spasht bhi ho raha hai! badhai.
Post a Comment