(१)
असंभव बच निकलना हो , तो डटकर सामना करिए /
समय प्रतिकूल हो तो भी , विजय की कामना करिए /
ये बाधाएं , विषमताएं , परीक्षाएं हैं जीवन की ,
इन्हें उत्तीर्ण करने के लिए , श्रम - साधना करिए /
(२)
बहुत से लोग , अक्सर डूब जाते हैं किनारे पर ,
वो हैं , वे लोग , जो रहते हैं औरों के सहारे पर ,
जो करते हैं भरोसा खुद का , जो खुद्दार होते हैं ,
बदल जातीं परिस्थितियाँ भी हैं , उनके इशारे पर /
(३)
जरूरी है कि गैरों में भी , कोई आत्मजन खोजें ,
जहाँ मूर्खों का जमघट हो , वहाँ भी ज्ञान-धन खोजें ,
नहीं होता कोई अपना , कोई दुश्मन नहीं होता ,
कहाँ , क्या चूक खुद से हो रही, अपना भी मन खोजें /
(४)
सफलता का कभी मापक , जुटाना धन नहीं होता ,
वही है दीन सबसे , स्वच्छ जिसका मन नहीं होता ,
धरा, धन, धाम,संसाधन , यहाँ अब तो वहाँ कल हैं ,
कभी धन से सुयश या कीर्ति स्थापन नहीं होता /
(५)
जरूरी धन मगर उतना , जो मद से भर न दे मन को ,
सुलभ उतने हों संसाधन , जरूरी हैं जो जीवन को ,
अगर धन है प्रचुर , लेकिन नहीं सुख - शान्ति जीवन की ,
तो उससे सौ गुना , खुशहाल समझो दीन - निर्धन को /
- एस.एन.शुक्ल
असंभव बच निकलना हो , तो डटकर सामना करिए /
समय प्रतिकूल हो तो भी , विजय की कामना करिए /
ये बाधाएं , विषमताएं , परीक्षाएं हैं जीवन की ,
इन्हें उत्तीर्ण करने के लिए , श्रम - साधना करिए /
(२)
बहुत से लोग , अक्सर डूब जाते हैं किनारे पर ,
वो हैं , वे लोग , जो रहते हैं औरों के सहारे पर ,
जो करते हैं भरोसा खुद का , जो खुद्दार होते हैं ,
बदल जातीं परिस्थितियाँ भी हैं , उनके इशारे पर /
(३)
जरूरी है कि गैरों में भी , कोई आत्मजन खोजें ,
जहाँ मूर्खों का जमघट हो , वहाँ भी ज्ञान-धन खोजें ,
नहीं होता कोई अपना , कोई दुश्मन नहीं होता ,
कहाँ , क्या चूक खुद से हो रही, अपना भी मन खोजें /
(४)
सफलता का कभी मापक , जुटाना धन नहीं होता ,
वही है दीन सबसे , स्वच्छ जिसका मन नहीं होता ,
धरा, धन, धाम,संसाधन , यहाँ अब तो वहाँ कल हैं ,
कभी धन से सुयश या कीर्ति स्थापन नहीं होता /
(५)
जरूरी धन मगर उतना , जो मद से भर न दे मन को ,
सुलभ उतने हों संसाधन , जरूरी हैं जो जीवन को ,
अगर धन है प्रचुर , लेकिन नहीं सुख - शान्ति जीवन की ,
तो उससे सौ गुना , खुशहाल समझो दीन - निर्धन को /
- एस.एन.शुक्ल
35 comments:
बहुत सुन्दर....
सच है...कहीं कोई भूल हमसे ही ना हुई हो...अपना मन भी खोजना ज़रूरी है..
सार्थक मुक्तक...
बधाई सर.
आशा ,विश्वास और ओज का संचार करती कविता
श्रम-साधक खुद्दार हो, धन से सम्यक प्यार ।
करे निरीक्षण स्वयं का, सुखमय शांति अपार ।।
समय प्रतिकूल न हो तो भी हिम्मत नही हारना चाहिए.....
बहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति,अच्छी रचना.....
MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
सफलता का कभी मापक , जुटाना धन नहीं होता ,
वही है दीन सबसे , स्वच्छ जिसका मन नहीं होता , बिल्कुल सत्य वचन …………बेहद शानदार संदेशपरक मुक्तक्।
बहुत सुंदर और सत्य वचन...जैसे ज्ञान के मोती !
bahut khoob kaha aapne....abhar
जूझकर भी प्रसन्न रहने का गुर सिखाती रचना।
संघर्ष है तो जीवन है अन्यथा बेकार है . बिना संघर्षों का जीवन बहुत ही निराशमय होता है
जीवन के लिए प्रेरणादायक रचना , आभार
संघर्ष है तो जीवन है अन्यथा बेकार है . बिना संघर्षों का जीवन बहुत ही निराशमय होता है
जीवन के लिए प्रेरणादायक रचना , आभार
अति विशिष्ट मुक्तक आपके
माफ़ी चाहूँगा कि आपके ब्लॉग पर आगमन प्रतिदिन नहीं हो पा रहा है, किन्तु मैं शीघ्र ही प्रयास करूँगा कि ब्लॉग को नियमित समय दूँ और अनमोल शब्द और साहित्य के परिचय प्राप्त करूँ!
कठिनाइयों में भी साहस से आगे बढ़ने को प्रेरित करती रचना.
बहुत सुन्दर.
सादर
बेहतरीन और शानदार........
असंभव बच निकलना हो, तो हम पीछे नहीं हटते
समय प्रतिकूल हो, एक छन, नहीं ये सामने डटते
पड़े तो पड़ भी जांए पैर में छाले, सुनो करूणा...
है हम भारत की संताने, नहीं ये हौसले घटते !
सार्थक मुक्तक....बधाई..
प्रेरणा दायक प्रस्तुति...बधाई...
बहुत ही प्रेरक पंक्तियां हैं। कोट करने लायक।
Exepression ji,
Aravind Misra ji,
Ravikar ji,
आपका स्नेह मिला, बहुत- बहुत आभार.
Dheerendra ji,
Vandana ji,
Anita ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाओं का कृतज्ञ हूँ.
Ayodhya Prasad ji,
आभारी हूँ आपके ब्लॉग पर आगमन और स्नेह प्रदान करने का.
Pravin pandey ji,
Shalini ji,
Rajpoot ji,
आपका प्यार मिला, आभार , धन्यवाद.
CHETANKAVI JI,
Madhuresh ji,
IMARAN ANSARI JI,
यह स्नेह अनवरत मिलता रहे, यही आकांक्षा है.
Karuna Saxena ji,
Dinedh Agarwal ji,
Manoj ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाओं का कृतज्ञ हूँ.
प्रेरक और उत्साहवर्धक.
अति सुन्दर , सार्थक भाव.
koun si kahoon......har pangti lazabab hai.
बहुत ही सकारात्मक सोच लिए कविता ....सच और सुन्दर !
bahut hi sarthak vichar hai muktak me ------------abhar
bahut khoob
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
आपके मुक्तक अद्भुत हैं...बधाई स्वीकारें.
नीरज
बहुत सुंदर और सारगर्भित मुक्तक...
Raahul Singh ji,
Kewal joshi ji,
Mridula ji,
आप मित्रों का यह स्नेह सदैव मिलता रहे , यही आकांक्षा है.
Saras ji,
Sandhya Tiwari ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन का स्वागत तथा शुभकामना के लिए आभार.
Ravikar ji,
Mitra Roomal chor ji,
आपका स्नेह मिला, आभार धन्यवाद.
♥
जवाब नहीं ... शानदार मुक्तक !
सफलता का कभी मापक , जुटाना धन नहीं होता
वही है दीन सबसे , स्वच्छ जिसका मन नहीं होता
धरा, धन, धाम,संसाधन , यहाँ अब तो वहाँ कल हैं
कभी धन से सुयश या कीर्ति स्थापन नहीं होता
*
जरूरी धन मगर उतना , जो मद से भर न दे मन को
सुलभ उतने हों संसाधन , जरूरी हैं जो जीवन को
अगर धन है प्रचुर , लेकिन नहीं सुख - शान्ति जीवन की
तो उससे सौ गुना , खुशहाल समझो दीन - निर्धन को
*
वाह जी वाह ! क्या कहने ...
आदरणीय एस.एन.शुक्ल जी
सादर नमन !
सस्नेहाभिवादन !
आपकी लेखनी का हमेशा ही कायल रहा हूं ..
बधाई और आभार !
~*~नव संवत्सर की बधाइयां !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Rajendra ji,
आपका स्नेह मिला, आभारी हूँ.
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