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Tuesday, March 27, 2012

(145) हिन्दोस्तान अपना है /

कहीं हो आग ,  जलायेगी उसकी फितरत  है,
कभी किसी का जले घर, मकान अपना  है  /

जो मरा हिन्दू, मुसलमाँ , ईसाई , सिख वो नहीं,
ज़रा  सा  गौर से  देखो , वो  कोई  अपना  है  /

मुल्क को बाँट सियासत में, कौम-ओ- फिरकों में ,
किसी  सुकून की  ख्वाहिश , ये महज  सपना है  /

नफरतें बोना- उगाना , ये बात ठीक नहीं ,
ओ नेकबख्त , ये सारा ज़हान अपना है  /

अपनी हरकत से झुके सिर न सरज़मीं का कहीं ,
ये देश अपना है , शान - ओ - गुमान  अपना है  /

वो लूट कैसी , कहीं भी , किसी के साथ सही  ,
जो लुट रहा है , वो हिन्दोस्तान  अपना है  /

                                  - एस. एन. शुक्ल 

32 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह.....बहुत सुंदर,बेहतरीन प्रस्तुति..
आपका समर्थक पहले से हूँ,.आप भी बने ताकि पोस्ट पर पहुचने में सुगमता रहेगी,...और मुझे
खुशी होगी,...

MY RESENT POST...काव्यान्जलि.....तुम्हारा चेहरा.

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया सर....
अपनेपन की भावना आ गयी तो बात ही क्या है..

सादर.
अनु

रविकर said...

bahut hi khubsurat prastuti |

aabhaar subah subah ek mast rachna padhvaane ke liye ||

Ayodhya Prasad said...

बहुत बढिया !
मेरा नया पोस्ट
 प्रेम और भक्ति में हिसाब !

meeta said...

bahut hi khoobsoorat kavita . dhanyawaad .

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा ... सारा जहां अपना है ... पर कुछ लोग इस बात को नहीं समझते ... नफरत के बीज बोते हैं ... अच्छी रचना है ...

shalini rastogi said...

सियासत की आंच पे रोटियां सेंकने वाले दोगले चेहरों को बेनकाब कराती एक यथार्थपरक अभिव्यक्ति..... बहुत खूब शुक्ल जी .

Anonymous said...

बहुत सुंदर......

शूरवीर रावत said...

....ये सारा जहां अपना है .....
"वासुदेव कुटुम्बकम" की भावना से ओतप्रोत एक सार्थक व बेहतरीन प्रस्तुति. आभार !!

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा आपने, क्रोध किसी पर हो, हानि अपनी होती है।

S.N SHUKLA said...

Dheerendra ji,
Anu ji,
Ravikar ji,
आभारी हूँ आपके स्नेह का.

S.N SHUKLA said...

Ayodhya prasad ji,
Meeta ji,

आपका समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना.

S.N SHUKLA said...

Shalini ji,
Karuna ji,
Subir Rawat ji,

यह स्नेह सदैव मिलता रहे, यही आकांक्षा है.

S.N SHUKLA said...

Pravin pandey ji,

इस स्नेह का आभारी हूँ.

Bhawna Kukreti said...

कुछ लोग इस बात को नहीं समझने वाले ...बहुत बढ़िया पोस्ट .

श्री राजीव said...

ये जहां अपना है. उपर वाले ने हमें जहां दिया हमने उसे काटकर हिन्दोस्ताँ बना दिया. अब तो ये हिन्दोस्ताँ भी बँट रहा है. शुक्ल जी यह पीड़ा असहनीय है.

Anonymous said...

बहुत बढ़िया

S.N SHUKLA said...

शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

Brijendra Singh said...

"अपनी हरकत से झुके न सर सरज़मीं का,
ये देश अपना है, शान ओ गुमान अपना है!!"
वाह..बहुत सुंदर रचना शुक्ल जी !!

Deepak Saini said...

मरे कोई भी, होगा तो इंसान ही

बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने

Deepak Saini said...

मरे कोई भी, होगा तो इंसान ही

बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने

Aruna Kapoor said...

देश कीकी शान में पेश की गई सुन्दर रचना!....आभार!

Anupama Tripathi said...

आपका ब्लॉग खुलता नहीं था ....बड़े दिनों बाद खुला है ....कोई एरर आता था ...आशा है अब खुलता रहेगा और हम नियमित आपकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ पाएंगे ...!

बहुत गहन अर्थ लिए ...शानदार रचना है ...!!
बहुत सुंदर भाव ...!
आभार.

Amrita Tanmay said...

बहुत सुंदर..

Pradeep said...

शुक्ल जी नमस्ते !

"कुछ मजहबों में बंट गए कुछ सरहदों में बंट गए।
उसका तो नहीं फिर सोचो यह किसका काम था।।
खोजने निकला तो कोई हिन्दू मिला, कोई मुसलमान।
न जाने कहां खो गया वो शख्स इंसान जिसका नाम था।।"

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ....

रचना दीक्षित said...

अपनी हरकत से झुके सिर न सरज़मीं का कहीं ,
ये देश अपना है , शान - ओ - गुमान अपना है

इस सोच को मेरा नमन और आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.

आपको चैत नवरात्र और नवसंवत की भी सादर बधाईयाँ.

S.N SHUKLA said...

BRAJENDRA SINGH JI,
Deepak Saini ji,

आपके स्नेहिल समर्थन का आभार.

S.N SHUKLA said...

Anupama ji,
Amrita ji,

आपका स्नेह मिला, आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Pradeep ji,
Rachana Dixit ji,

आभारी हूँ आप शुभचिंतकों के स्नेह का.

dinesh aggarwal said...

वाह...वाह...वाह...शब्द-शब्द में देशभक्ति...
आन्दोलित करती रचना...
सराहनीय रचना की प्रस्तुति के लिये बधाई...

S.N SHUKLA said...

Dinesh Agrawal ji,

आभारी हूँ आपके उत्साहवर्धन का.

Sunitamohan said...

bahut behtareen sanvedansheel rachna hai aur is par lagai tasveer se is kavita ka arth spasht bhi ho raha hai! badhai.